Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३) विहाय योगं कलिता नरेण वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ३७॥ अर्थ-शुकमुनि बोले-हे रंभे ! संसारमें सद्भाव और ईश्वरकी भक्तिसे हीन, (मनुष्योंके ) चित्तको चोरनेवाली हृदयमें दया नहीं रखनेवाली, ऐसी पापिनी नारी जिसने योगाभ्यास छोड़के आलिंगित की उस नरका जीवन व्यर्थ गया ॥ ३७॥ ___ रम्मोवाच ॥ सुगन्धैः सुपुष्पैः सुशय्या सुकान्ता वसन्तो ऋतुः पूर्णिमापूर्णचन्द्रः॥ यदा नास्ति पुंस्त्वं नरस्य प्रभूतं ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्॥३८॥ अर्थ-रंभा बोली-जिस नरको पुरुषपना नहीं है तो बहुत उत्तम सुगंधित, सुंदर पुष्पोंकरके शेज बनाई तो उससे क्या है ? सुंदर मनोहर स्त्री है तो क्या है ? वसंतऋतु है क्या भया ? पूर्णिमासीकी रात्रीविषे चंद्रमा खिल रहा है तो क्या भया ? अर्थात् जिसने स्त्रीसंग नहीं किया (उस नरका पुरुषार्थ और ऐश्वर्य वृथा है ) ॥३८॥ For Private and Personal Use Only

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