Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१) योगच्छला येन विभाजिता च वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ३३ ॥ अर्थ-शुकमुनि बोले-हे रंभे ! जो स्त्री मदोन्मत्त वेषवाली, मदिरा पीनेसे उन्मत्त हुई है, और पाप देनेवाली, तथा लोगोंकी विडंबना करनेवाली, संगमात्रमें छल करती है ऐसी स्त्रीके संग जिसनें रमण किया, उस मनुष्यका जीवन व्यर्थ गया ॥३३॥ रम्भोवाच ॥ आनन्दरूपा तरुणी नताङ्गी सद्धर्मसंसाधनसृष्टिरूपा॥ कामार्थदा यस्य गृहे न नारी वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ३४ ॥ अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! पुरुषोंको आनंद देनेवाली, जवान अवस्थावाली, (कुचभारसे) नत अंगवाली, (प. तिव्रता आदि ) श्रेष्ठ धर्मको साधनेवाली, और संतान उत्पन्न करनेवाली, काम अर्थको देनेवाली, ऐसी सुंदरी नारी जिसके घरमें नहीं है उस नरका जीवन व्यर्थ गया ॥ ३४ ॥ शुक उवाच ॥ अशौचदेहा पतितस्वभावा वपुःप्रगल्भा बललोभशीला ॥ For Private and Personal Use Only

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