Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-हे हरे ! आप विधिको उल्लंघके ( मर्यादाको मेटके) पराई स्त्रियोंके प्रसंगको कैसे अंगीकार करतेहो ? हे भामिनि ! विधाताकाभी विधाता ( रचनेवाले) मेरे विधाताकी विधि मेटनेमें क्या भीति है कहो // 11 // उदीर्यमाणेऽपि च सान्त्ववादे मानापनोदो नहि राधिकायाः॥ मानोऽस्तु ते यद्यपराधिकः स्यां स्वप्नेऽपि नैवास्म्यपराधिकोऽहम् // 12 // अर्थ--हे हरे ! सांत्ववाद ( शांतिपूर्वक कहने सुननेसेभी ) राधाका मान ( गरूर) गुस्सा दूर नहीं हुआ है. हे राधे ! जो मैं अपराधिक अर्थात् अपराधवाला ( द्वितीय पक्षे राधासे रहित ) होउं तो तुम्हारे मान हो सो मैं मुपनामेंभी अपराधिक नहीं होताहूं // 12 // मुक्तिं समीयुभवभीतिभाजो भवत्पदाम्भोजरजो जुषन्तः॥ बद्धस्त्वयाऽहं भुजवल्लरीभ्या राधे निकुञ्ज मधुमाधवीनाम् // 13 // For Private and Personal Use Only

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