________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१५)
शक्तिमान, योगमय परमात्मा जिसने तपमें स्थित होके अपने चित्तमें धारण नहीं किया, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥२१॥
रम्भोवाच॥ सुलक्षणा मानवती गुणाढ्या
प्रसन्नवक्त्रा मृदुभाषिणी या ॥ नो चुम्बिता येन सुनाभिदेशा
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥२२॥ अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! सर्व सुलक्षणी, मान करनेवाली, सब उत्तम गुणोंवाली, प्रसन्न मुखवाली, कोमल वचन बोलनेवाली, सुंदर गंभीर नाभिवाली, त्रिवलीयुक्त उदरवाली, ऐसी सुंदरी स्त्री जिसने चुंबन नहीं की, ( और उसके संग रमण. नहीं किया ) उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥ २२॥
शुक उवाच ॥ पत्न्यार्जितं सर्वसुखं विनश्वरं
दुःखप्रदं कामिनि भोगसेवितम् ॥ एवं विदित्वा न धृतो हि योगो
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २३॥
For Private and Personal Use Only