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(१८) अर्थ-शुकमुनि बोले-हे रंभे ! समाधिको हरनेवाली, मनुष्योंको मोह करानेवाली, धर्ममें कुमंत्री ( धर्म बिगाड़नेवाली), कपट ( छल) को फैलानेवाली, श्रेष्ठ कर्मको हरनेवाली, ऐसी स्त्री जिसनें भोगी, तिस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥ २७॥
रम्भोवाच ॥ बिल्वस्तनी कोमलिता सुशीला
सुगन्धकुन्ता ललिता च गौरा ॥ नाश्लेषिता येन च कण्ठदेशे
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २८॥ अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! बेलफल (बेलवृक्षके फल) समान गोल कठोर स्तनोंवाली, मृदु शरीरवाली, सुंदर स्वभाववाली, अतर चमेली आदिसे सुगंधित किये हुए वालोंवाली, मनोहर, गौरवर्ण, ऐसी सुंदरी स्त्री गलेकी जगह मिलाके जिसने ग्रहण नहीं की, उस मनुष्यका जीबना व्यर्थही गया ॥ २८ ॥
शुक उवाच ॥ चिन्ताव्यथादुःखमयी सदोषा
संसारपाशा जनमोहकी ॥
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