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(१७) छबड़ी, नरककी हंडी ( पात्र ), तपको नष्ट करनेवाली, पुण्यको क्षीण करनेवाली, मनुष्योंके ( पुरुषार्थ आदिकों) नाश करनेवाली, ऐसी स्त्री जिसने बहुत कालतक सेवन करी उस नरका जीवन व्यर्थ गया ॥२६॥
___ रम्भोवाच ॥ समस्तशृङ्गारविनोदशीला
लीलावती कोकिलकण्ठनाला॥ विलासिता नो नवयौवनाढ्या
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ २६ ॥ अर्थ-रंभा कहने लगी-संपूर्ण शृंगार और विनोद ( हावभाव कटाक्ष आदि ) करनेमें चतुर, लीला ( हास्यक्रीडाआदि ) करनेवाली, कोयलके समान मधुर कंठवाली, नवीन यौवनसे युक्त हुई ऐसी सुंदरी स्त्री जिसने नहीं भोगी, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥ २६ ॥
शुक उवाच ॥ समाधिहन्त्री जनमोहयित्री
धर्मे कुमन्त्री कपटस्य तन्त्री॥ सत्कर्महन्त्री कलिता च येन
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ।। २७॥
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