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(५)
तीर्थे तीर्थे निर्मलं ब्रह्मवृन्दं
वृन्दे वृन्दे तत्त्वचिन्तानुवादः॥ वादे वादे जायते तत्त्वबोधो ___ बोधे बोधे भासते चन्द्रचूडः॥३॥
अर्थ-और तीर्थतीर्थविषे निर्मल ब्रह्मावूद हैं, (अनेक निर्मल शुद्ध ) ब्राह्मणलोग रहते हैं, तिनके वृंदवृंदमें आत्मतत्त्व चिंतनका अनुवाद (वेदांतकी चर्चा ) रहता है, तिस वादवादमें आत्मतत्त्वका बोध होता है, और बोधबोधमें चंद्रशेखरका (ईश्वरका ) साक्षात्कार होता है ॥३॥
- रम्भोवाच ॥ गेहे गेहे जङ्गमा हेमवल्ली
वल्ल्या वल्ल्यां पार्वणं चन्द्रबिम्बम् ।। बिम्बे बिम्बे दृश्यते मीनयुग्मं
युग्मे युग्मे पञ्चबाणप्रचारः॥ ४॥ अर्थ-रंभा बोली-हे ऋषिराज! घरघरमें चलनेवाली हेमलता रहती है, अर्थात् विचित्र सुंदरी स्त्री सुवर्णकी वेलसमान इधरउधर फिरती है, तिस स्त्रीका मुख पूर्णचंद्रमाके समान है, तहां मुखरूप प्रतिचंद्रमापर दो नेत्र
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