Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! अत्यंत कामवती, पूर्ण चंद्रमाके समान मुखवाली, कुंदुरुके समान लाल होठोंवाली, कोमल गौर अंगवाली सुंदरी स्त्री जिसने अपने दोनों हाथ पसारके आलिंगन नहीं करी, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥८॥ शुक उवाच ॥ चतुर्भुजश्चक्रधरो गदायुधः पीताम्बरः कौस्तुभमालया लसन् ॥ ध्याने धृतो येन न बोधकाले वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ९॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले-हे रंभे ! चार भुजाओंवाले, चक्रधारी, गदाधारी, पीतांबर (पीला वस्त्र) धारी, कौस्तुभ रत्नकी मालासे शोभित ऐसे श्रीकृष्ण भगवान् जिसने बोधकालमें स्वस्थ जाग्रत् अवस्थामें ध्यानमें धारण नहीं किये, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥९॥ रम्मोवाच ॥ विचित्रवेषा नवयौवनाढ्या लवङ्गकर्परसुवासिदेहा॥ नालिङ्गिता येन दृढं भुजाभ्यां वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ १०॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31