Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! प्रिय बोलनेवाली, चंपा और सुवर्णसरीखे वर्णवाली, हारोंकी आवली (पंक्ति) से शोभित नाभिवाली, संभोगसमयमें उत्तम शील ( स्वभाव ) वाली ऐसी स्त्रीके संग जिसने रमण नहीं किया, उस नरका जीवना व्यर्थही गया ॥ १२॥ शुक उवाच ॥ श्रीवत्सलक्ष्म्याङ्कितहृत्प्रदेश स्ता_ध्वजः शार्ङ्गधरः परात्मा ।। न सेवितो येन नृजन्मनापि वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ १३॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले-हे रंभे ! जिनका हृदय श्रीवत्सचिन्हकी शोभासे युक्त है, गरुडकी ध्वजावाले, और शार्ङ्गधनुषको धारण करनेवाले, ऐसे परमात्मा श्रीकृष्ण जिस मनुष्यने सेवन नहीं किये, उस नरका जीवन वृथा चला गया ॥ १३ ॥ रम्भोवाच ॥ चलत्कटी नूपुरमञ्जुघोषा नासाग्रमुक्ता नयनाभिरामा । न सेविता येन भुजङ्गवेणी वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only

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