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(१२) नो मर्दितौ येन कुचौ निशाया
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ १६॥ अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! तांबूल (पान चावने ) की मनोहरतासे, और पुष्पधारणकी अत्यंत शोभासे युक्त, तथा अतर चमेली आदि सुगंधित तैलोंकरके खुशबूदार (सुगंधित ) हुई ऐसी सुंदरी मनोहर स्त्रीकी कुचा मर्दन जिसने रात्रिसमय नहीं की, उस नरका जीवना व्यर्थ हुवा ॥ १६ ॥
शुक उवाच॥ ब्रह्मादिदेवोऽखिलविश्वदेवो
मोक्षप्रदोऽतीतगुणः प्रशान्तः ॥ धृतो न योगेन हृदि स्वकीये
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥१७॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले- हे रंभे ! ब्रह्मा आदिकोंका देव, संपूर्ण विश्वका देव अर्थात् प्रकाशक, मोक्ष देनेवाला, सत्व रज आदि गुणोंसे अलग रहा, प्रशांतस्वरूप ऐसा परमात्मा जिसने अपने हृदयमें ध्यानविषे धारण न किया, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥ १७ ॥
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