Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) नो मर्दितौ येन कुचौ निशाया वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ १६॥ अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! तांबूल (पान चावने ) की मनोहरतासे, और पुष्पधारणकी अत्यंत शोभासे युक्त, तथा अतर चमेली आदि सुगंधित तैलोंकरके खुशबूदार (सुगंधित ) हुई ऐसी सुंदरी मनोहर स्त्रीकी कुचा मर्दन जिसने रात्रिसमय नहीं की, उस नरका जीवना व्यर्थ हुवा ॥ १६ ॥ शुक उवाच॥ ब्रह्मादिदेवोऽखिलविश्वदेवो मोक्षप्रदोऽतीतगुणः प्रशान्तः ॥ धृतो न योगेन हृदि स्वकीये वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥१७॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले- हे रंभे ! ब्रह्मा आदिकोंका देव, संपूर्ण विश्वका देव अर्थात् प्रकाशक, मोक्ष देनेवाला, सत्व रज आदि गुणोंसे अलग रहा, प्रशांतस्वरूप ऐसा परमात्मा जिसने अपने हृदयमें ध्यानविषे धारण न किया, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31