Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! विचित्र वेष ( शृंगार ) धारण करनेवाली, नवीन यौवनसे ( जवानीसे ) युक्त हुई, लौंग कपूर आदिसे सुगंधित शरीरवाली स्त्री, जिसनें भुजाओंकरके अच्छी तरह आलिंगन नहीं कीई, उस नरका जीवना व्यर्थही गया ॥१०॥ शुक उवाच ॥ नारायणः पङ्कजलोचनः प्रभुः केयूवान कुंडलमंडिताननः॥ भक्त्या स्तुतो येन समाधिना नो॥ वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ११ ॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले-हे रंभे ! कमलसमान नेत्रोंवाले, बाजूबंदवाले, कुंडलोंसे विभूषित मुखवाले, ऐसे प्रभु नारायण जिसने ध्यान लगाके भक्ति करके स्तुत नहीं किये तिस नरका जीवना वृथा गया ॥ ११ ॥ रम्भोवाच ॥ प्रियंवदा चम्पकहेमवर्णा हारावलीमंडितनाभिदेशा॥ संभोगशीला रमिता न येन वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ १२॥ For Private and Personal Use Only

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