Book Title: Rambhashuk Samvad Author(s): Hariprasad Bhagirath Publisher: Hariprasad Bhagirath View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! जिस नारीके स्तन (कुच) बड़े कठोर हैं, और जिसके शरीरमें चंदनका लेप किया हुआ है, चंचल नेत्रोंवाली और जवान, सुंदर शील ( सुभाव ) वा. ली ऐसी स्त्री जिस मनुष्यने प्रेमसे नहीं आलिंगन ( भुजाओंसे ग्रहण) कि है, उस नरका जीना वृथाही गया ॥ ६॥ शुक उवाच ॥ अचिन्त्यरूपो भगवान्निरञ्जनो विश्वंभरो ज्ञानमयश्चिदात्मा ॥ विशोधितो येन हदि क्षणं नो वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ७॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले-हे रंभे ! सुनो, अचिंत्य ( चिंतन करने अशक्य ) जिसका रूप है, निर्लेप भगवान् है, विश्वभर (विश्वको पालता है), ज्ञानमय चैतन्य ऐसा परमात्मा जिसनें क्षणमात्रभी अपने हृदयसे नहीं देखा, उसका जीवना व्यर्थही गया ७ रम्भोवाच ॥ कामातुरा पूर्णशशाङ्कवका बिम्बाधरा कोमलनाल गौरा ॥ नान्दोलिता स्वे हृदये भुजाभ्यां वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ८॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31