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अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! जिस नारीके स्तन (कुच) बड़े कठोर हैं, और जिसके शरीरमें चंदनका लेप किया हुआ है, चंचल नेत्रोंवाली और जवान, सुंदर शील ( सुभाव ) वा. ली ऐसी स्त्री जिस मनुष्यने प्रेमसे नहीं आलिंगन ( भुजाओंसे ग्रहण) कि है, उस नरका जीना वृथाही गया ॥ ६॥
शुक उवाच ॥ अचिन्त्यरूपो भगवान्निरञ्जनो
विश्वंभरो ज्ञानमयश्चिदात्मा ॥ विशोधितो येन हदि क्षणं नो
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ७॥ अर्थ-शुकदेवजी बोले-हे रंभे ! सुनो, अचिंत्य ( चिंतन करने अशक्य ) जिसका रूप है, निर्लेप भगवान् है, विश्वभर (विश्वको पालता है), ज्ञानमय चैतन्य ऐसा परमात्मा जिसनें क्षणमात्रभी अपने हृदयसे नहीं देखा, उसका जीवना व्यर्थही गया ७
रम्भोवाच ॥ कामातुरा पूर्णशशाङ्कवका
बिम्बाधरा कोमलनाल गौरा ॥ नान्दोलिता स्वे हृदये भुजाभ्यां
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ८॥
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