Book Title: Rambhashuk Samvad
Author(s): Hariprasad Bhagirath
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 eft: 11 रम्भाशुकसंवादः । भाषानुवादसमलंकृतः । श्रीः । उत्थानिका -सुना जाता है कि, पहले एक समय श्रीशुकदेवस्वामी गंगाजीके तटपर तपस्याकर रहे थे, तब उनके तपोबलकों देख इंद्र घबराया कि यह मुनि अपने तपोबलसे मेरे राज्यकों लेगा. इसलिये, किसी उपायसे इसकी तपस्या नष्ट करनी चाहिये इस अभिप्रायसे इंद्रनें मनमोहिनी अप्सराओंमें अति सुंदर मोहनी रंभानामक एक अप्सरा सब शृंगार सजाके मन हर्षाके मुनिके पास भेजी. वह आके अपने मुखका पट खोळ, कोमल वचन बोल मुनिको मोहनेलगी रम्भोवाच ॥ मार्गे मार्गे नूतनं चूतखण्डं खण्डे खण्डे कोकिलानां विरावः ॥ रावेरावे मानिनीमानभङ्गो भङ्गे भङ्गे मन्मथः पञ्चह्मणः ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only

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