Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016
Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 4
________________ राजकुमार श्रेणिक प्रसेनमित घोड़े पर सवार हुए। एड़ लगाई घोड़े की तेज गति से घबराकर प्रसेनमित ने ज्यों ही कि घोड़ा हवा में तैरता दिखाई दिया। कुछ लगाम खींची, घोड़ा झटके से रुक गया। प्रसेनजित ही देर में घोड़ा नगर सीमा से बहुत दूर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। भयानक जंगल में पहुँच गया। HTTA IVETVN HOR Var MANCE (COM SAP SD.NL PAN एक सुन्दर कन्या पानी का घड़ा लेकर उधर से आ रही थी, उसने जमीन पर गिरे मूर्छित राजा को देखा तो राजा के मुँह पर शीतल पानी छिटका राजा ने ऑखें खोली/ प्यास के कारण उससे बोला नहीं जा रहा था, उसने इशारों से समझाया कन्या ने फुर्ती से पास के वृक्षों से कुछ फल तोड़े। राजा फल खाना तो भूल गया और अल्हड़ सन्दरी कन्या के रूप को निहारने लगा। अच्छा प्यास लगी है? रुको, मैं कुछ वनफल तोड़कर Ma लाती हूँ, फल खाकर फिर पानी पीना अरे! मेरी तरफ क्या देखते हो, देखने से क्या I प्यास बुझेगी? लो फल खाओ और पानी पीलो। रामा ने फल खाकर पानी पी लिया। Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibio

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