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राजकुमार श्रेणिक
घोषणा सुनकर श्रेणिक ने सेठ से कहा
सेठजी ! आप यह पटह (घोषणा) स्वीकार कर लीजिए।
सेठ ने राजा का पटह स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन विदेशी व्यापारी सेठ सुभद्र के पास आया। सेठ श्रेणिक को साथ लेकर उसे अपने गोदाम में ले आया
देखो, यह सब सेठ जी, माल तेजतरी बालू है। क्या आपका है, आप ही कीमत दोगे?
कीमत बताइए
व्यापारी ने सेठ को मुंहमांगी कीमत देकर बालू के घड़े उठवा लिये।
एक दिन नंदा ने श्रेणिक से कहा
हरामा ने भी सेठ सुभद्र व श्रेणिक को अपनी सभा में बुलाकर सम्मानित किया
आपने हमारे नगर का गौरव बढ़ाया है, इसीलिए आज से आप को नगर सेठ का सम्मान
प्रदान किया जाता है।
स्वामी, आज शुभरात्रि में मैंने केसटीसिंह का स्वप्न
'देखा है।
देवी ! तुम अवश्य ही सिंह के समान वीर और बुद्धिमान पुत्र की माता बनोगी!
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श्रेणिक राज-सभा में सेठ सुभद्र के जंवाई के रूप में ही पहचाना जाता था। राजा भी उसे 'जवाईराजा' के नाम से ही पुकारने लगा।
यह सुनकर नन्दा लजा गई।
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