Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016
Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ राजा प्रसेनजित ने निमित्तज्ञों को बुलाकर पूछातो उन्होंने बताया महाराज! इस भूमि पर कोई देवी प्रकोप है अतः इस स्थान से पश्चिम में आधा योजन दूर पर राजभवन का नव निर्माण किया जाय। राजकुमार श्रेणिक निमित्तज्ञों के बताये अनुसार राजा ने वैभार गिरी, रत्नगिरी आदि पर्वतमाला की गोद में एक ऊँचा रमणीय स्थान देखकर वहाँ पर विशाल राजभवन बनाया। तब से कुशाग्रपुर का नाम राजगृह (राजा का घर) प्रसिद्ध हो गया। Juin Education International श्रेणिक के चले जाने से राजा प्रसेनजित बहुत दुखी थे। परन्तु वचन से बँधे होने कारण विवश होकर उन्हें तिलकवती के पुत्र चिलाती कुमार का राजतिलक करना पड़ा। राजतिलक होते ही चिलाती कुमार कोषाध्यक्ष को बुलाकर आदेश दिया हमें अपने नये वस्त्र, आभूषण बनवाने को अभी एक लाख स्वर्ण मुद्रा चाहिए। (CO2 27 For Private & Personal Use Only नरक NNNN महाराज ! राजकोष तो खाली पड़े हैं। पहले अग्नि-कांडों से नगर का व्यापार चौपट हो गया, रहा सहा धन नया नगर बसाने में लग चुका है। www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38