Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016
Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ राजकुमार श्रेणिक राजा ने प्रसन्न होकर कहा AMOHAR ANDROOPER "महाराज ! कल से पर्युषण का अष्टान्हिक पर्व प्रारंभ हो रहा है। आठ दिन तक नगर में पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा रोक कर अभयदान की घोषणा करा दें। यही मेरी इच्छा है जंवाईराजा, आपकी वीरता से हम बहुत प्रभावित हुये। आप जोरपण चाहें पुरस्कार माँग सकते हैं। ALI YY राज-आज्ञा के अनुसार नगर में आठ दिन अभयदान घोषित हो गया। अचानक अपना दोहद पूरा हुआ जान कर नंदा हर्ष से झूम उठी। इधर श्रेणिक के कुशाग्रपुर छोड़ने के बाद नगरवासियों पर भी जैसे प्रकृति का कोप बरस पड़ा। वहां बार-बार अग्नि प्रकोप होने लगा और उसमें सैकड़ों भवन आदि मलकर भस्म हो गये। एक दिन प्रसेनजित राज भवन से बाहर निकले ही थे कि अचानक राज-भवन में भी आग की लपटें उठती दिखाई दीं। धू-धूकर राजमहल जलने लगा। C551 EENEMIES AND 26 in Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38