Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016
Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाकर चित्रकथा अंक ल्ये १७.०० राजकुमार श्रेणिक जयपुर प्राकृत ह अकादमी सुसंस्कार निर्माण विचार शुद्धि : ज्ञान वृद्धि मनोरंजन भारती Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - राजकुमार श्रेणिक मगधपति महाराज श्रेणिक भगवान महावीर के परम भक्त राजाओं में प्रमुख थे। वह इतिहास प्रसिद्ध शिशुनाग वंशी राजा थे। जैन इतिहास में उनका श्रेणिक भम्भासार नाम प्रसिद्ध है जबकि इतिहासकार विम्बिसार श्रेणिक लिखते हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार राजमहल में आग लगने से भंभा (भेरी) बचाकर लाने से उनका नाम 'भंभासार' प्रसिद्ध हुआ। - श्रेणिक के पिता राजा प्रसेनजित भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी श्रावक थे। श्रेणिक का कुल धर्म निर्ग्रन्थ (जैन) धर्म ही है किन्तु मगध से निर्वासन काल में एक बौद्ध आचार्य के सद्व्यवहार से प्रभावित होकर तथा उनके द्वारा शीघ्र ही मगध सम्राट बनने की भविष्य वाणी के कारण श्रेणिक उनके प्रभाव में कुछ समय तक रहे। यही कारण है कि महाराज चेटक की पुत्री के साथ विवाह के समय वे जैन धर्म से दूर थे किन्तु बाद में चेलणा के प्रयत्नों व अनाथी मुनि के संपर्क से श्रेणिक पुनः निर्ग्रन्थ धर्म के निकट आये। आगे चलकर भगवान महावीर के परम भक्त बन गये।। श्रेणिक अत्यधिक बुद्धिमान, साहसी, पराक्रमी और कुशल शासक थे। राज सिंहासन पर बैठने से पूर्व उन्हें एक घुमक्कड का जीवन बिताना पड़ा और बहुत समय तक गुमनाम रहे। उनकी विलक्षण बुद्धि व उच्च कुलीन लक्षणों से प्रभावित होकर वणिक कन्या नंदा ने उसे पति रूप में प्राप्त किया। नंदा स्वयं अत्यन्त बुद्धिमती, धर्मशीला थी। नंदा के संस्कार उसके पुत्र अभय कुमार में पल्लवित हुए। श्रेणिक-अभय कुमार के जीवन से सम्बधित अनेक रोचक कथाएँ जैन साहित्य में उपलब्ध हैं। प्रस्तुत चित्रकथा में केवल श्रेणिक को मगध सिंहासन पर आरूद्ध होने तक की रोचक घटना ली गई है। राजगृह को पूर्व भारत की शक्तिशाली समृद्ध नगरी बनाने का श्रेय भी श्रेणिक को ही है। इस रोचक ऐतिहासिक कथा का आलेखन श्रमणसंघ के विना आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने किया है। उनके अनुग्रह के प्रति हम कृतज्ञ हैं। -महोपाध्याय विनयसागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' लेखक : आचार्य श्री देवेन्द्र नि । सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' संयोजक : श्री दिनेश मुनि प्रबन्ध सम्पादक : संजय सुराना चित्रण : श्यामल मित्र प्रकाशक दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने एम. जी. रोड, आगरा-282 002. दूरभाष : 351165,51789 श्री देवेन्द्र राज मेहता सचिव, प्राकृत भारती अकादमी 3826, यती श्याम लाल जी का उपाश्रय मोती सिंह भोमियो का रास्ता, जयपुर-302003 मुद्रण एवं स्वत्वाधिकारी : संजय सुराना, दिवाकर प्रकाशन, ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-2 दूरभाष : (0562) 351165,51789 - - Jain Education international Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक वैभार गिरी आदि पाँच पर्वतों की तलहटी में बसी मगध देश की राजधानी का नाम था कुशाग्रपुर। राजा प्रसेनजित वहाँ के शासक थे। वे २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के उपासक और बड़े वीर योद्धा थे। प्रसेनजित की कई रानियाँ थीं जिनमें प्रमुख थी कलावती। राजा के १०० पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र था श्रेणिक । एकबार राजा प्रसेनजित की सभा में सिंध प्रान्त के सौदागर तरह-तरह के घोड़े लेकर आये। घोड़े | देखकर राजा ने कहा EXENCE महाराज ! हाथ कंगन को आरसी क्या, परीक्षा के लिए घोड़ा तैयार है, परीक्षा ले लीजिये। Jain Erion International आपके घोड़े दीखने में बड़े सुन्दर लगते हैं? क्या दौड़ने में भी इतने ही तेज हैं? naaaa Onion सौदागर ने एक सफेद रंग का चपल घोड़ा राजा के सामने पेश किया। 1 www.jalnelibrary.org Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक प्रसेनमित घोड़े पर सवार हुए। एड़ लगाई घोड़े की तेज गति से घबराकर प्रसेनमित ने ज्यों ही कि घोड़ा हवा में तैरता दिखाई दिया। कुछ लगाम खींची, घोड़ा झटके से रुक गया। प्रसेनजित ही देर में घोड़ा नगर सीमा से बहुत दूर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। भयानक जंगल में पहुँच गया। HTTA IVETVN HOR Var MANCE (COM SAP SD.NL PAN एक सुन्दर कन्या पानी का घड़ा लेकर उधर से आ रही थी, उसने जमीन पर गिरे मूर्छित राजा को देखा तो राजा के मुँह पर शीतल पानी छिटका राजा ने ऑखें खोली/ प्यास के कारण उससे बोला नहीं जा रहा था, उसने इशारों से समझाया कन्या ने फुर्ती से पास के वृक्षों से कुछ फल तोड़े। राजा फल खाना तो भूल गया और अल्हड़ सन्दरी कन्या के रूप को निहारने लगा। अच्छा प्यास लगी है? रुको, मैं कुछ वनफल तोड़कर Ma लाती हूँ, फल खाकर फिर पानी पीना अरे! मेरी तरफ क्या देखते हो, देखने से क्या I प्यास बुझेगी? लो फल खाओ और पानी पीलो। रामा ने फल खाकर पानी पी लिया। Education Interational www.jainelibio Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक | फिर उसने कन्या से पूछा KANIAMONAKASHATTIAHINIFFANW उस पहाड़ी पर हमारी छोटी-सी कुटिया है। चलो तुम रातभर वहीं विश्राम कर लेना। (यहाँ से कुशाग्रपुर कितना दूर है? अरे बाबा, कुशाग्रपुर तो यहाँ से बहुत दूर है, अब तो अंधेरा भी घिर रहा है, तुम इस बीहड़ वन में रात को भटक जाओगे। TEAM नलाल GU INISOLAN राजा प्रसेनजित ने अपना परिचय दिया और पूछा कन्या प्रसेनजित को अपनी कुटिया के पास ले आई। उन्हें देखकर कुटिया में से एक सुदृढ़ शरीर वाला व्यक्ति बाहर आया। उसने आगे बढ़कर राजा प्रसेनजित का स्वागत किया। यह लड़की कौन है? । यह मेरी इकलौती fauपुत्री तिलकवती है। इस भील पल्ली का स्वामी यमदण्ड आपका स्वागत करता है। HALINGANA राजा प्रसेनजित ने रात भर वहीं कुटिया में विश्राम किया। For Priva3 Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक यमदण्ड ने हाथ जोड़कर कहा तिलकवती ने प्रसेनजित की इतनी सेवा की कि वह | उसके रुप पर ही नहीं, गुणों पर भी मुग्ध हो गया। प्रातः काल राजा प्रसेनजित ने यमदण्ड से कहा "महाराज ! हमारे पास ऐसा है भीलराज मुझे आपकी ही क्या जो आपको भेंट कर कन्या तिलकवती का सकें, फिर भी जो है वह सब / हाथ चाहिए। आपके लिए तैयार है। (भीलराज ! आपने अतिथि-सेवा करके मुझे प्रसन्न ही नहीं; मुग्ध भी कर दिया, परन्तु मैं आपको कुछ दै. इससे पहले आपसे कुछ माँगना चाहता हूँ। यह सुनकर यमदण्ड सोच में पड़ गया। राजा ने कहा | फिर यमदण्ड ऊँचे आकाश की ओर देखते हुए बोला किस विचार में पड़ गये । महाराज ! यह कन्या ही मेरी भीलराज ! क्या मुझे कन्या Mसब कुछ है, मैंने प्रण ले रखा रत्न नहीं देना चाहते?/ है! मैं उसे ही कन्या रत्न दूंगा जो मेरा प्रण पूरा करेगा ... महाराज! मेरा प्रण है, मैं अपनी प्राणों से प्यारी इस कन्या का विवाह उसी व्यक्ति के साथ करूँगा जो इसकी होने वाली सन्तान को अपना उत्तराधिकारी बनायेगा... www.jainelibrary.og Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसेनजित भावना में बह गये। कर्तव्य पर काम का, विवेक पर वासना का भूत सवार हो गया, वे बोले 365 हम वचन देते हैं भीलराज, तिलकवती की सन्तान ही हमारी उत्तराधिकारी होगी। राजकुमार श्रेणिक यमदण्ड तुरत-फुरत में अपनी पल्ली के साथियों को बुलाया। सबकी साक्षी में तिलकवती ने राजा के गले में वरमाला डाल दी। my (ক.ন राजा प्रसेनजित का वचन लेकर यमदण्ड सन्तुष्ट हो गया। प्रसेनजित तिलकवती को साथ लेकर नगर लौट आया। कुछ समय बाद तिलकवती ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम रखा गया चिलाती कुमार। श्रेणिक आदि राजकुमारों के साथ चिलाती कुमार को भी शिक्षण प्राप्त हुआ। युवा होने के साथ-साथ उसके स्वभाव की कठोरता, क्रूरता और उद्दण्डता बढ़ती गई। n Education International चिलाती कुमार इतनी निर्दयता से इसे मत पीटो। इसने राज कर की चोरी की है। मैं इसकी खाल खींच लूँगा। VAGE GE Mod 90 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय के साथ राजा प्रसेनजित वृद्ध हो गये। एक दिन उन्होंने अपने महामंत्री वाचस्पति को 'बुलवाया आओ ! महामंत्री ! मैं बहुत देर से आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा हूँ। प्रसेनजित के मुख पर . एकदम चिंता की रेखा उभर आईं। राजकुमार श्रेणिक मेरा अहोभाग्य है जो महाराज ने याद किया। क्या आदेश है महाराज ! महामंत्री ! मेरी उम्र अब ढलती जा रही है ! इसलिए मगध का राजपाट किसी सुयोग्य हाथों में सौंप देना चाहता हूँ। हाँ, वो तो है, परन्तु महामंत्री, आपको पता नहीं, रानी तिलकवती के पिता भीलराज ने मुझसे यह वचन लिया था कि तिलकवती का पुत्र ही मगध राज्य का उत्तराधिकारी होगा। दुर्भाग्य की बात है चिलाती कुमार राज्य का उत्तराधिकारी होने के योग्य नहीं है। .. यदि मैं उसका राजतिलक कर देता हूँ तो मगध के राज परिवार में ही गृह-युद्ध हो जायेगा, जिसका परिणाम होगा सर्वनाश.... इसमें चिंता की क्या बात है महाराज ! राजकुमार श्रेणिक वैसे भी आपके ज्येष्ठ पुत्र 'हैं और बुद्धि-पराक्रम, न्याय-नीति आदि, प्रत्येक बात में पारंगत हैं। . 227525 PHON Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक | अपनी बात जारी रखते हुये प्रसेनजित ने कहा- प्रसेनजित की बात सुनकर महामंत्री वाचस्पति कुछ समय महामंत्री ! आप विलक्षण बद्रि तक सोचते रहे फिर बोलेवाले हैं सोचिए, कुछ ऐसा उपाय कीजिये सॉप भी मर महाराज, राजकुमार श्रेणिक को /किसी बहाने कुछ समय के लिए मगध जाय और लाठी भी न टूटे।। से दूर भेज दिया जाय तो गृह-युद्ध टल सकता है। उनके पीछे आप चिलाती कुमार का राज-तिलक कर दें। फिर जैसा होगा देख लेंगे.... (OM ON गराएजसम राजा प्रसेनजित के संकेतानुसार मंत्री ने एक योजना बनाई।। दूसरे दिन राजाज्ञा के अनुसार 900 राजकुमारों को भोजन-शाला में पंक्तिबद्ध बैठाकर भोजन परोसा गया। श्रेणिक सबके बीच में बैठे। अभी राजकुमार भोजन प्रारम्भ कर ही रहे थे कि अचानक भूखे शिकारी कुत्ते भौं-ौं कर भोजन-शाला पर टूट पड़े। डर के मारे सभी राजकुमार उठ-उठकर भाग गये। CHOPRIL COM Jäin Education International For Pre & Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक. साहसी श्रेणिक ने भागे हुये राजकुमारों की थालियाँ कुत्तों की तरफ सरका दीं। कुत्ते उन थालियों पर टूट पड़े और श्रेणिक निर्भय निश्चित होकर अपना भोजन करता रहा। FRORS CECALLAR DSDSDSDS FOOD राजा और मंत्री महल के भीतर छुपकर यह दृश्य देख रहे थे। देखा महाराज, इन सब में राजकुमार श्रेणिक ही ऐसा साहसी और बुद्धिमान है, जो सब को खिलाकर खा सकता है। स्वजन और दुर्जन सब को सन्तुष्ट रखकर, अपने राज्य का भोग करते रहना ही राजा की विशेषता है। प्रसेनजित श्रेणिक की चतुराई देखकर प्रसन्न हो गये। For Privat 8& Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसेनजित ने सभी राजकुमारों को बुलाकर पूछा भोजन कर लिया ? Angootoos wwwwww DOG महाराज ! हम भोजन कैसे करते ? शिकारी कुत्ते जो आ गये ! परन्तु बड़े राजकुमार श्रेणिक तो बडे ढीठ हैं.. जो कुत्तों के साथ ही भोजन करते गये। राजकुमार श्रेणिक प्रसेनजित ने प्रसन्नता छुपाते हुए श्रेणिक को डाँटा खलदर श्रेणिक ! आपने सचमुच कुत्तों के साथ भोजन कर राजकुल की मर्यादा घटाई है .... अगले दिन राजा प्रसेनजित ने सभी राजकुमारों को बुलाकर कहा 20 देखो, ये मिट्टी के कोरे घड़े हैं, सभी एक-एक घड़ा ले जाओ और इसमें ओस 'का पानी भरकर लाओ। श्रेणिक मन ही मन बहुत दुखी हुआ। राजकुमार एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे यह कैसा विचित्र आदेश है ? क्या ओस की बूँदों से कभी घड़ा भर सकता है ? परन्तु राजा के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई। www.jalnelibrary. ry.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमार श्रेणिक दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही सभी राजकुमार घड़ा लेकर उद्यान में पहुँचे और घास पर गिरी ओस की बूँदों को घड़े में टपकाकर घड़ा भरने का प्रयत्न करने लगे। 1516 San ELE अब यह पानी नहीं सोखेगा। いろ घड़ा राजकुमार श्रेणिक भी घड़ा लेकर नदी किनारे पहुँचे। पहले कोटे घड़े को नदी के पानी में डुबोगा, कुछ देर बाद निकाला, देखा, अब घड़ा पूरा भीग गया है। Sumitr WENDUNGA Education International 000 परन्तु घड़ा उस बूंद बूंद पानी को सोख लेता, और सूखा का सूखा ही रहता। पानी से भरना तो दूर, घड़ा गीला भी नहीं हुआ। JA STE Hite WOEN Pune 40 FU 14 die फिर घास पर एक सफेद पतली चादर बिछाई। ओस कणों से चादर भीग गई। arty Wayf LA ilu V 10 66 E Tags Re प Hom JAMA Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक चादर को घड़े में निचोड़ लिया बार-बार ऐसा करने पर ओस के पानी से धड़ा भर गया। सभी राजकुमार खाली घड़े लिये महाराज के सामने उपस्थित हुए परन्तु श्रेणिक ओस-जल से भरा घड़ा सेवक के सिर पर रखवाकर ले आये। राजा ने श्रेणिक आपके सभी भाई खाली घड़े Io लेकर आये हैं फिर आपने ओस । जल से घड़ा कैसे भरा ? पूछा LAULA AGARALIANOR malkinसिलाल nilion OI ofOHAN श्रेणिक ने अपनी तरकीब बताई। सुनकर राजा प्रसेनजित मन में बहुत प्रसन्न हुए। सोचने लगे वास्तव में राजा को प्रजा से थोड़ा-थोड़ा कर इसी प्रकारे ग्रहण करना चाहिए जिससे राजकोष भी भर जाय और प्रजा को भी पीड़ा नहीं पहुंचे। परन्तु ऊपर से अप्रसन्नता दिखाते हुए बोलेश्रेणिक ! आपने हमारी आज्ञा का ठीक से पालन नहीं किया है, हम आपसे अप्रसन्न हैं। सब कुछ ठीक करते हुए भी महाराज मुझे गलत समझ रहे हैं। MARA MA श्रेणिक मन में बहुत दुखी हुआ। उदास मन लिए वह चुपचाप चला गया। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक एक दिन कुशाग्रपुर के राज-भवन में आग लग गई। राजा ने घोषणा की करवाई- 000000000000 सभी लोग अपनीअपनी प्रिय वस्तु लेकर निकल भागो! राजा प्रसेनजित ने देखा Jan Education International 1924 श्रेणिक ने अपनी जान जोखिम में डालकर राजचिन्हों की रक्षा की है, यही इस राज्य की रक्षा कर सकता है। 000/ कोई राजकुमार अपने वस्त्र, कोई भोजनसामग्री, कोई धन, कोई कुछ लेकर भागा। श्रेणिक छत्र, चंवर और भंभा (भेरी) लेकर निकल आये। 1000000 12 51 परन्तु खुशी छुपाकर उपहास के स्वर में राजा बोले 1000004 Tuka वाह रे श्रेणिक ! कैसे मूर्ख हो तुम, सभी अपना-अपना प्यारा सामान ये लेकर आये और तुम फालतू वस्तुयें...? Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमार श्रेणिक ऐसा निश्चय कर श्रेणिक वेष बदलकर नगर से बाहर निकला और पश्चिम दिशा में चल पड़ा। श्रेणिक को मन ही मन बहुत क्रोध आया। परन्तु पिता के सम्मान का ध्यान रखकर वह चुपचाप वहाँ से निकल गया। एकान्त में बैठकर सोचने लगा जहाँ मेटरी योग्यता का उपहास होता हो वहाँ एक क्षण भी नहीं रहना चाहिए। ALAM W AN 10- MART HTTARAISENSE ArA Sandee STANT Vram AAG Pouginigre a t ala HOM ललन कुछ दूर अकेला चलते-चलते श्रेणिक उकता गया। तभी उसे एक प्रौढ़ व्यक्ति आगे जाता हुआ दीखा। वह था वेणातट का सेठ सुभद्र। श्रेणिक तेज चलकर उसके पास पहुंचा और पुकारा- wife-topasa सुभद्रसेठ ने चौंककर पीछे देखा, मामा कहने पर उसे आश्चर्य हुआ, वह रुक गया। तब तक श्रेणिक भी उसके पास आ पहुंचा। बोला अच्छा साथी मिलना मामा, हम दोनों musline एक ही दिशा में जा रहे हैं तो तो भाग्य की बात है, चलो ठीक ही है! साथ-साथ चलो तो यात्रा अच्छी रहेगी। रास्ता आराम से कटेगा, एक से दो भले। मामा! Awaa aisexyc a SAVA M For Personal use only wwwjainelibrary.org Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभद्र को चुपचाप चलते देखकर श्रेणिक ने कहा युवक ! यह कौनसा रथ होता मामा, यदि हम जिह्वा रथ पर सवार होकर चलें तो रास्ता जल्दी कटेगा। श्रेणिक हँसकर बोला मेरा मतलब है बातें करते हुए चलें तो रास्ता आराम से कटेगा। थकावट भी नहीं आयेगी। है? फिर तुम्हारे पास तो कुछ है भी नहीं। 0000 SAMA 337 TELY राजकुमार श्रेणिक www लगता तो बड़ा तेज और बुद्धिमान है। श्रेणिक हँसकर बोला मामा ! दीखने में तुम बड़ी उम्र के अनुभवी लगते हो। परन्तु जिह्वा रथ का मतलब नहीं जानते? AL חד चलते-चलते दोपहर हो गई। श्रेणिक बोला ZANI 24452 MING 1250 नहीं ! मैने तो ऐसा रथ कभी नहीं देखा। मामा ! | भूख लग गई है। सामने गाँव दीख रहा है ! वहाँ चलें। For. P. 14 & Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकुमार श्रेणिक तभी गाँवं का एक आदमी मिल गया। सुभद्र ने पूछा- दोंनो गाँव में मुखिया नन्दीनाथ के पास पहुंचे। बोले बाबा ! हम कुशाग्रपुर से भाई! यह कौन-सा यह नंदी ग्राम है, आये हैं भूख लगी है। क्या गाँव है, किस जाति ब्राह्मणों की बस्ती आपके गाँव में यात्रियों के के लोग रहते हैं है, बाबा नन्दीनाथ लिए कोई भोजन की यहाँ। यहाँ के मुखिया व्यवस्था नहीं है? व्यवस्था तो है, परन्तु कुशाग्रपुर वालों को भोजन तो दूर हम एक ठूट पानी भी नहीं पिलाते। वहाँ के राजा प्रसेनमित ने हम पर/ बहुत अत्याचार किये हैं। अपमान का कड़वा चूंट पीकर श्रेणिक और सुभद्र सेठ वहाँ से आगे चल पड़े। रास्ते में एक बौद्ध विहार (मठ) मिला। दोनों यात्री मठ में पहुंचे। वहाँ के आचार्य ने प्रेमपूर्वक दोनों यात्रियों का स्वागत किया और भोजन कराया। विश्राम कर जब दोनों यात्री आगे चलने को हुए तो आचार्य ने श्रेणिक को आशीर्वाद देते हुए कहा तेजस्वी युवक ! आप के शुभ लक्षण बोलते हैं शीघ्र ही आप किसी राज्य के प्रतापी सम्राट बनेंगे। यदि आपका वचन (सत्य सिद्ध हुआ तो मैं आप को अवश्य ही राज-सम्मान से विभूषित करूंगा। For P 15 & Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक. दोनों यात्री आगे चले तो देखा कि एक खेत में कोई पुरुष एक स्त्री को पीट रहा है! स्त्री मार खा रही है और रोती जा रही है। श्रेणिक ने पूछा 艺 VAMINE मामा ! यह मार खाने वाली स्त्री बँधी है या खुली ? www MM ANTI Polye कुछ दूर आगे चले तो एक नदी आ गई। नदी में पानी कम और दोनों किनारों पर बालू अधिक थी। बालू में चलते समय श्रेणिक ने अपने जूते उतार कर हाथ में ले लिये। सुभद्र हँसने लगा। A 11 ife 7544 सुभद्र ने माथा ठोका 10 Se For Pril 6 & Personal Use Only viy अरे! मैं तो w hud समझ रहा था यह युवक बुद्धिमान है, परन्तु यह तो निरा बुहू लगता है। 000000 MM PAUDW मामा ! क्या बात है ? आप क्यों हँसे ? NADA फिर भी वह चुप रहा। जब गहरा पानी आया तो सुभद्र ने अपने जूते उतारे, परन्तु श्रेणिक ने जूते पाँवों में पहन लिये। यह देखकर तो वह खूब जोर से हँस पड़ा। श्रेणिक समझ गया, फिर भी पूछा MM Mind kin कुछ नहीं भानजे ! यूँ ही कुछ हँसी आ गई। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक नदी पार करते ही वेणातट गाँव आ गया। सुभद्र सेठ ने सोचा 'अब इस महामूर्ख से पिंड छुड़ा लेना ही अच्छा है, संगत भली न मूर्ख की ..... 0000000 swe Marwadi SAR COR - r VAYANTRAAUNTAINME वह श्रेणिक से बोलाभानजे, मेरा गाँव आ गया है। तुम अभी इस आम की छाया में बैठो, मैं घर जाकर तुम्हारे ठहरने की | व्यवस्था करके बुलावा भेजता हूँ। KOMSA PORN श्रेणिक अपनी छतरी तानकर आम की छाया में बैठ गया। यह देखकर तो हँसते-हँसते सुभद्र सेठ के पेट में बल पड़ गया।। यह तो वास्तव में महामूखों का भी गुरु है। (RELCoda Rea 6A Int/ आम के नीचे छतरी तानकर बैठने का अर्थ है- वृक्ष पर बैठे पक्षी बीट कर दें तो छती ताजने से उससे बचाव हो जाता है। www.jainelibrary Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभद्र सेठ अपने घर आ पहुँचा। उसकी रूपवती कन्या नन्दा लोटे में गर्म जल लेकर आई। हाथ-पैर धोकर सुभद्र विश्राम करने लगा तो नन्दा ने पूछा पिताजी! हर बार तो आप जल्दी लौट आते हैं, आज इतनी देर क्यों हो गई सेठ ने कहा बेटी, सबसे पहले उसने मुझे 'मामा' कहकर पुकारा। यह तो 'जान न पहचान मैं तेरा मेहमान' वाली बात हुई न ? पिता जी, मुझे वह युवक बड़ा रहस्यमय लगता है। उसकी सब बातें सुनाइए। राजकुमार श्रेणिक सेठ हँसकर बोला बेटी, एक महामूर्ख युवक साथ हो गया था, उसकी ऊल-जलूल बातें सुनते-सुनते इतना समय लग गया। पिताजी, ऐसी क्या बातें कीं उसने, जरा मुझे भी तो बताइए न ? सेठ ने एक-एक करके सभी बातें सुनाईं और फिर खूब जोर से हँसा अब तू ही बता, बेटी, ऐसा महामूर्ख पल्ले पड़ जाये तो क्या करें? 18 पिताजी, मुझे तो वह युवक मूर्ख नहीं, अपितु बड़ा बुद्धिमान लगता है। उसकी हर बात में कुछ अर्थ है। 6G3 www.jainelibrary orga Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ ने कहा अच्छा, तू भी तो बड़ी सयानी है, रज में तज निकाल लेती है। बता क्या मतलब है उसकी बातों का ? पिताजी, उसने आपको मामा बनाया, मतलब हुआ उसकी माँ, बड़ी सती साध्वी है, जगत् के सब पुरुष उसके भाई हुए क्यों हैं न ? 1913) इसी प्रकार बँधी स्त्री और खुली स्त्री का मतलब साफ है, यदि वह स्त्री विवाहिता थी, तो बँधी थी। पति की राजकुमार श्रेणिक मार सहकर भी छोड़कर नहीं जा सकती। यदि रखैल (खुली) होती तो मार खाकर भाग भी सकती थी। 日 सेठ ने सिर खुजाया नहीं पिताजी, देखिए मैं बताती हूँ उसका रहस्य । जिह्वा रथ का मतलब तो उसने बता ही दिया। हाँ, यह बात तो ठीक है, परन्तु आगे की बातें तो बड़ी ऊट-पटांग थीं न ? MOT बेटी, लगता है यह तेरी जोड़ी का है। विलक्षण बुद्धिमान पुरुष है। मैं तो उसे पिंड छुड़ाने के लिए गाँव के बाहर ही छोड़ आया हूँ। DEWAL नंदा ने सब बातों के रहस्य प्रकट किये तो सेठ बड़ा विस्मित हुआ ? बोला YO विलक्षण बुद्धिमान पुरुष को तो अपना अतिथि बनाना चाहिए। बालू में चलते समय जूते उतारने का मतलब है, बालू भर जाने से जूते भारी हो जाते हैं, फिर चलना कठिन होता है अतः जूते उतारकर चलना उसकी 19 युद्ध का परिचय है। पानी में जूते पहन कर चलने से पानी के भीतर छुपे कंकर-काँटे, छोटे-मोटे जीव-जंतु पैर को क्षति नहीं पहुँचा सकतेillborkargr Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक BINOMOBIO कुछ दिन पहले ही पिताजी को स्प स्वप्न आया था कि कोई प्रतापी राजकुमार हमारे घर पर आया है, और पिताजी ने उसी के साथ मेरा विवाह कर दिया। कहीं वह स्वप्न सच तो नहीं होने जा रहा है? दासी ने जाकर श्रेणिक को निमंत्रण दिया। श्रेणिक सेठ के घर पहुंचा। घर के सामने कुछ कीचड़ था। आते-आते कीचड़ में श्रेणिक के पैर गंदे हो गये। दासी एक लोटे में। थोड़ा-सा पानी लेकर आई लीजिए, अपने पैर साफ कर लीजिए। COTO उसने श्रेणिक को बुलाने के लिए दासी को भेजा।। श्रेणिक ने देखा, लोटे में थोड़ा-सा पानी है। इतने कम पानी से पैर कैसे साफ होंगे। यह सोचकर इधर-उधर देखा, तो बॉस की एक पतली-सी खपच्ची दिखाई दी। पास ही एक पतला-सा कपड़ा रखा था। श्रेणिक मन ही मन मुस्कराया। उसने खपच्ची से कीचड़ छुड़ाया और फिर कपड़ा गीला करके थोड़े से पानी से ही पैर साफ कर लिये नंदा यह देखकर सोचने लगी TOMMY ओह तो मेरी परीक्षा ली जा रही है। जरूरत पड़ने पर यह व्यक्ति कम से कम वस्तु में भी अपना काम निकाल सकता है। 2000 MAHILD DIMAD AGOलाला Education International 20 For private & Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IYONE रामकुमार श्रेणिक उसने और भी कई परीक्षाएँ ली। हर परीक्षा में श्रेणिक स्नान आदि से निवृत हुआ। भोजन कर श्रेणिक की चतुरता स्वभाव की शालीनता प्रकट हुई। चुकने पर सेठ ने कहानंदा समझ गई (व्यक्ति की महानता उसकी वाणी से न नहीं, कार्य प्रणाली से ही प्रकट होती भानजे ! अब है। यह अवश्य ही कोई उच्चकुलीन । घर पर बैठे क्या करोगे? और बुद्धिमान पुरुष है। आओ, हम दुकान पर चलते हैं। Pour मा श्रेणिक सेठ के साथ दुकान पर आकर बैठ गया। उस दिन सेठ की दुकान पर दूर-दूर के कई बड़े व्यापारी आये। सायंकाल धन की थैली भरकर सेठ घर पर आया, और अपनी पुत्री से बोला बेटी, यह मेहमान तो बड़ा भाग्यशाली दीखता है। आम एक ही दिन में महीनों की कमाई हो गई। धीरे-धीरे नंदा और श्रेणिक का परस्पर परिचय बढ़ता गया। एक दिन नंदा ने पिता से कहा पिताजी, आप ने एक दिन एक स्वप्न देखा था न? लगता है वह अब सच होने वाला है। 950 DOS हाँ बेटी, भाग्य से घर बैठे। ही कल्पवृक्ष आ गया है, सोचता हूँ अब इस कल्पवृक्ष को घर-VS आँगन में ही रोप कर रखलें।/20 कुछ दिन बाद सेठ ने श्रेणिक के साथ नंदा का विवाह कर दिया। श्रेणिक घर जवाई बनकर रहने लगा। 21 an Education International Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F5507 एक दिन श्रेणिक और सुभद्र सेठ घूमते हुए घर के पिछवाड़े के बाड़े में चले गये। वहाँ लाल बालू का ढेर देखकर सेठ नें सेवकों को डाँटा यह रेत यहाँ क्यों रखी है? इसे बाहर फैंक कर घर की सफाई करो। कुछ दिन बाद एक विदेशी व्यापारी (बनजारा) वेणातट नगर में आया। उसने वहाँ के राजा से प्रार्थना की 'महाराज, मुझे तेजंतरी बालू की जरूरत है, जिस 60 किसी के पास हो, मैं मुँहमाँगी कीमत देकर लेना चाहता हूँ। in Education International राजकुमार श्रेणिक सेठ जी, विदेशों से आये हुए जहाजों की सफाई में यह बालू रेत निकली है, लाल-लाल चमकदार कण देखकर हमने यहाँ ढेर लगा दिया है। ΟΙ Ο OIC श्रेणिक ने बालू कण हाथ में लेकर देखा, उसने सेठ से कहा- सेठ जी, यह तेजंतरी बालू है। पारस पत्थर के कण इस में मिले हुए हैं इसे फिक वाइये मत, अपने गोदाम में सुरक्षित रखवा दीजिए। SRIDE सुनकर सेठ चकित हो गया। सेठ के आदेश से घड़ों में भरकर रेत गोदाम में सुरक्षित रख दी गई। राजा ने नगर में घोषणा करवा दी 22 जिस किसी भाग्यवान के पास तेजंतरी बालू हो, वह महाराज को सूचित करे। उसे मुँहमाँगी कीमत दी जायेगी। MAYE Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक घोषणा सुनकर श्रेणिक ने सेठ से कहा सेठजी ! आप यह पटह (घोषणा) स्वीकार कर लीजिए। सेठ ने राजा का पटह स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन विदेशी व्यापारी सेठ सुभद्र के पास आया। सेठ श्रेणिक को साथ लेकर उसे अपने गोदाम में ले आया देखो, यह सब सेठ जी, माल तेजतरी बालू है। क्या आपका है, आप ही कीमत दोगे? कीमत बताइए व्यापारी ने सेठ को मुंहमांगी कीमत देकर बालू के घड़े उठवा लिये। एक दिन नंदा ने श्रेणिक से कहा हरामा ने भी सेठ सुभद्र व श्रेणिक को अपनी सभा में बुलाकर सम्मानित किया आपने हमारे नगर का गौरव बढ़ाया है, इसीलिए आज से आप को नगर सेठ का सम्मान प्रदान किया जाता है। स्वामी, आज शुभरात्रि में मैंने केसटीसिंह का स्वप्न 'देखा है। देवी ! तुम अवश्य ही सिंह के समान वीर और बुद्धिमान पुत्र की माता बनोगी! MARUDD श्रेणिक राज-सभा में सेठ सुभद्र के जंवाई के रूप में ही पहचाना जाता था। राजा भी उसे 'जवाईराजा' के नाम से ही पुकारने लगा। यह सुनकर नन्दा लजा गई। 23 ton International Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीन महीने बाद फिर एक दिन नंदा ने श्रेणिक से कहा स्वामी मेरे मन में एक अद्भुत दोहद# उत्पन्न हुआ है! Ooice दोहद सुनकर श्रेणिक चिंतित हो गया राजकुमार श्रेणिक देवी, बताओ, मैं उसे अवश्य पूर्ण करूँगा। देवी, यह दोहद धन-बल और बुद्धि-बल से पूर्ण होना मुश्किल है। इसके लिए राज-बल चाहिए। कुछ सोचना पड़ेगा। # दोहद = गर्भवती माता की तीव्र इच्छा स्वामी कल से ही अष्टान्हिक पर्व (पर्युषण पर्व) प्रारम्भ हो रहे हैं। आठ दिन तक नगर में किसी भी प्रकार पंचेन्द्रिय हिंसा न हो । सब जीवों को अभयदान मिले। | तभी राजमार्ग पर कोलाहल सुनाई दिया। श्रेणिक ने घर के झरोखे से बाहर झाँका। 24 अरे पागल हाथी शहर में घुसकर तोड़-फोड़ कर रहा है। 127 वह दौड़कर तुरन्त नीचे आया। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तभी उसे उद्घोषणा सुनाई दी Watera Jen Education International राजकुमार श्रेणिक सुनो सुनो ! नगर जनों ! जो कोई वीर पराक्रमी पुरुष महाराज के पागल पट्ट हस्ती को वश में करेगा, उसे महाराज जितशत्रु मुँह माँगा पुरस्कार देंगे। re गज विद्या में निपुण श्रेणिक आगे आ गया। उसने पहले हाथी को खूब दौड़ाया। फिर उछलकर उस पर चढ़ा और अंकुश लगाकर उसे वश में कर लिया। हाथी का मद उतर गया। श्रेणिक ने उसे गजशाला में लाकर बाँध दिया। 25 HO . Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक राजा ने प्रसन्न होकर कहा AMOHAR ANDROOPER "महाराज ! कल से पर्युषण का अष्टान्हिक पर्व प्रारंभ हो रहा है। आठ दिन तक नगर में पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा रोक कर अभयदान की घोषणा करा दें। यही मेरी इच्छा है जंवाईराजा, आपकी वीरता से हम बहुत प्रभावित हुये। आप जोरपण चाहें पुरस्कार माँग सकते हैं। ALI YY राज-आज्ञा के अनुसार नगर में आठ दिन अभयदान घोषित हो गया। अचानक अपना दोहद पूरा हुआ जान कर नंदा हर्ष से झूम उठी। इधर श्रेणिक के कुशाग्रपुर छोड़ने के बाद नगरवासियों पर भी जैसे प्रकृति का कोप बरस पड़ा। वहां बार-बार अग्नि प्रकोप होने लगा और उसमें सैकड़ों भवन आदि मलकर भस्म हो गये। एक दिन प्रसेनजित राज भवन से बाहर निकले ही थे कि अचानक राज-भवन में भी आग की लपटें उठती दिखाई दीं। धू-धूकर राजमहल जलने लगा। C551 EENEMIES AND 26 in Education International Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रसेनजित ने निमित्तज्ञों को बुलाकर पूछातो उन्होंने बताया महाराज! इस भूमि पर कोई देवी प्रकोप है अतः इस स्थान से पश्चिम में आधा योजन दूर पर राजभवन का नव निर्माण किया जाय। राजकुमार श्रेणिक निमित्तज्ञों के बताये अनुसार राजा ने वैभार गिरी, रत्नगिरी आदि पर्वतमाला की गोद में एक ऊँचा रमणीय स्थान देखकर वहाँ पर विशाल राजभवन बनाया। तब से कुशाग्रपुर का नाम राजगृह (राजा का घर) प्रसिद्ध हो गया। Juin Education International श्रेणिक के चले जाने से राजा प्रसेनजित बहुत दुखी थे। परन्तु वचन से बँधे होने कारण विवश होकर उन्हें तिलकवती के पुत्र चिलाती कुमार का राजतिलक करना पड़ा। राजतिलक होते ही चिलाती कुमार कोषाध्यक्ष को बुलाकर आदेश दिया हमें अपने नये वस्त्र, आभूषण बनवाने को अभी एक लाख स्वर्ण मुद्रा चाहिए। (CO2 27 नरक NNNN महाराज ! राजकोष तो खाली पड़े हैं। पहले अग्नि-कांडों से नगर का व्यापार चौपट हो गया, रहा सहा धन नया नगर बसाने में लग चुका है। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिलाती 200 कुमार ने राजअधिकारियों को बुलाकर कहा प्रजा से कर वसूल करो, सभी वस्तुओं पर पहले से चार गुना कर लगा दो, जो कर नहीं दे उसका धन लूट लो / राज- कर्मचारियों ने नगर लूट तभी नगर के सभ्य श्रेष्ठि जनों ने भी आकर चिलाती कुमार की शिकायत की राजकुमार श्रेणिक महाराज! कुमार अपनी दुराचारी मित्र मंडली के साथ नगर की माता बहनों की इज्जत पर हाथ डाल रहे हैं। हम असुरक्षित हैं, प्रजा की रक्षा कीजिए। खसोट मचा दी। प्रजा ने आकर महाराज प्रसेनजित से रक्षा की गुहार की महाराज ! हमारी रक्षा कीजिए। चिलाती कुमार के आदेश से राजकर्मचारियों ने नगर में लूटपाट मचा रखी है। चिलाती कुमार के अत्याचारों व उत्पीड़न की शिकायतें सुनकर दुखी वृद्ध प्रसेनजित गंभीर रूप से बीमार हो गये। उन्होंने मंत्री वाचस्पति से कहा शा महामंत्री, अब मेरा अन्तिम समय निकट आ गया है, मैं अपना दुःख सह सकता हूँ, किन्तु प्रजा को दुःखी नहीं देख सकता। तुम श्रेणिक को खोज कर लाओ, वही इस राज्य की रक्षा कर सकता है। 28 1000, 166 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक महामंत्री ने अपने विश्वासी गुप्तचर श्रेणिक की खोज में भेज दिये। श्रेणिक का चित्र लेकर गाँव-गाँव में पूछते और पता लगाते हुए एक गुप्तचर वेणातट में आ पहुँचा। नगर में घूमते हुए उसने एक राज-पुरुष से पूछा גרדו FRO CELL Mark भाई! तुमने इस चित्र वाले व्यक्ति को कहीं देखा है ? अरे ! यह तो अपना जँवाईराजा क्या मतलब? इसका नाम क्या है? इसका नाम तो किसी को नहीं पता, परन्तु सेठ सुभद्र का जँवाई है। यह बड़ा वीर, पराक्रमी और बुद्धिमान है। समूचे नगर में जँवाईराजा के नाम से ही प्रसिद्ध है। Kexexee CEEEE COC For Pr 29& Personal Use Only. प Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक गुप्तचर सेठ सुभद्र के घर पर पहुंचा। सामने श्रेणिक बैठा दीख गया। गुप्तचर ने आदर पूर्वक प्रणाम किया। श्रेणिक ने उसे पहचान लिया। भीतर कक्ष में ले जाकर पूछाक्या बात है? महाराज! आपके पिताश्री (तुम यहाँ कैसे आये ? मृत्युशय्या पर पड़े हैं, बार-बार आप से मिलने की इच्छा प्रकट कर रहे हैं, आप तुरन्त चलिए। II (Sग गुप्तचर ने चिलाती कुमार के अत्याचार और प्रसेनजित की बीमारी का पूरा वृतांत श्रेणिक को कह सुनाया। गुप्तचर के मुख से मगध की दुर्दशा के समाचार : सुनकर श्रेणिक की आँखें भर आईं-1 कुमार! नगर के बाहर हमारे दो अश्वारोही तैयार खड़े हैं।) आप अविलम्ब चलें। पिताजी ने भले ही मुझे अपमानित किया, परन्तु संकट के समय उनकी सेवा करना मेरा धर्म है। WOOO VEEN POWER 66 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेणिक भवन के भीतर गया और नंदा को सब बताकर कहा मेरे पिता जी अंतिम शय्या पर पड़े मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं तुरन्त जाना पड़ेगा। स्वामी मैं भी आपके साथ चलूँगी। श्रेणिक ने एक पत्र देते हुये कहा Cummi DANGGOT यह पत्र सुरक्षित रखना इसमें मैंने अपना सब नाम-पता लिख दिया है। toternational राजकुमार श्रेणिक श्रेणिक ने समझाया ऐसी स्थिति में प्रस्थान करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। STA मैं यहाँ आपके बिना कैसे रहूँगी ? फिर आप का पुत्र होगा वह पूछेगा तो क्या कहूँगी ? आपने आज तक अपना कुछ भी परिचय नहीं बताया। www CO 31 1000 नंदा और कुछ पूछती, तब तक श्रेणिक घर से बाहर निकल गया। नंदा ने पत्र पढ़ा मैं राजगृह नगर का गोपाल हूँ। नगर में सबसे ऊँचे स्थान पर सफेद महल पर ध्वजा फहराती देख लेना वहीं मेरा आवास है। पत्र में लिखी बात नन्दा की समझ में नहीं आई। www.jalnelibrary.org Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकुमार श्रेणिक प्रसेनजित ने श्रेणिक को छाती से लगा लिया नगर के बाहर वृक्ष के नीचे दो घोड़े तैयार खड़े थे। श्रेणिक एक घोड़े पर चढ़ा, दूसरे पर गुप्तचर चढ़ा। दोनों राजगृह में आ पहुँचे। श्रेणिक ने पिता को प्रणाम किया वत्स ! सबसे बड़ी भूल तो मैंने की। हीरे को मिट्टी में फेंक दिया और कंकर को मुट्ठी में बाँध लिया। पिताजी, बिना पूछे घर छोड़कर चले जाने की मेरी भूल क्षमा करें। Sae mmshnamany अगले दिन श्रेणिक का राज्याभिषेक किया गया। प्रसेनजित ने अपने हाथ से राज मुकुट श्रेणिक के मस्तक पर रखा। सभी लोग एक साथ बोल उठे महाराज प्रसेनजित के (उत्तराधिकारी युवराज श्रेणिक की जय... GOOOOOR 11/ महदर श्रेणिक के राज्याभिषेक की खबर चिलाती कुमार ने सुनी तो वह अपने दुष्ट नीच मित्रों के साथ राजगृह छोड़कर जंगलों में भाग गया। समाप्त 32C www.janellesorg Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बात आपसे भी सम्माननीय बन्धु, सादर जय जिनेन्द्र ! जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियाँ का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने प्रारम्भ किया है। १ इन चित्र कथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा। है हमें विश्वास है कि इस तरह की चित्रकथायें आप निरन्तर प्राप्त करना चाहेंगे। अतः आप इस पत्र के ६ साथ छपे सदस्यता फार्म पर अपना पूरा नाम, पता साफ-साफ लिखकर भेज दें। आप एकवर्षीय सदस्यता (११ पुस्तकें), दो वर्षीय सदस्य (२२ पुस्तकें), तीन वर्षीय सदस्यता ३ (३३ पुस्तकें), चार वर्षीय सदस्यता (४४ पुस्तकें), पाँच वर्षीय सदस्यता (५५ पुस्तकें) ले सकते हैं। आप पीछे छपा फार्म भरकर भेज दें। फार्म व ड्राफ्ट/M. O. प्राप्त होते ही हम आपको रजिस्ट्री से अब तक छपे अंक तुरन्त भेज देंगे तथा शेष अंक (आपकी सदस्यता के अनुसार) हर माह डाक द्वारा आपको भेजते रहेंगे। धन्यवाद ! od. आपका L LOONLaad नोट-अगर आप पूर्व सदस्य हैं तो हमें अपना सदस्यता क्रमांक लिखें। हम उससे आगे के अंक ही आपको भेजेंगे। श्रीचन्द सुराना 'सरस' सम्पादक दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ क्षमादान • सती मदनरेखा • मृत्यु पर विजय भगवान ऋषभदेव युवायोगी जम्बू कुमार • आचार्य हेमचन्द्र और सम्राट कुमार पाल 8. णमोकार मंत्र के चमत्कार • मेघकुमार की आत्म-कथा • अहिंसा का चमत्कार . चिन्तामणि पार्श्वनाथ • बिम्बिसार श्रेणिक • महायोगी स्थूल भद्र . भगवान महावीर की बोध कथायें महासती अंजना • अर्जुन माली : दुरात्मा से बना महात्मा . बुद्धि निधान अभय कुमार • चक्रवर्ती सम्राट भरत • पिंजरे का पंछी 3. शान्ति अवतार शान्तिनाथ भगवान मल्लीनाथ • चन्द्रगुप्त और चाणक्य 8. किस्मत का धनी धन्ना ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती • भक्तामर की चमत्कारी कहानियाँ E. करुणा निधान भ. महावीर (भाग १, २) . महासती अंजना सुन्दरी महासती सुभद्रा B. राजकुमारी चन्दनबाला विचित्र दुश्मनी • असली खजाना . सिद्ध चक्र का चमत्कार • भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण • महासती सुलसा BESISESISE Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्षिक सदस्यता फार्म WORDPRERNMENDMENDEDICADEMORRODAMANG मान्यवर, मैं आपके द्वारा प्रकाशित दिवाकर चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए सदस्यता प्रदान करें। (कृपया उचित जगह 0 का निशान लगायें) 0 एक वर्ष के लिए (११ पुस्तकें) १७०/- 0 दो वर्ष के लिए (२२ पुस्तकें) ३२०/- 1 0 चार वर्ष के लिए (४४ पुस्तकें) ६००/- 0 पाँच वर्ष के लिए (५५ पुस्तकें) ७५०/। मैं शुल्क की राशि एम. ओ./ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें। 87 Name RAJNISH (in capital letters) पता Address पिन Pin EM.O./D. D. No. - - Bank -Amount नोट-पुराने सदस्य कृपया अपना सदस्यता क्रमांक लिखें। हम अपने आप उनकी सदस्यता का नवीनीकरण अगले वर्षों के लिए कर देंगे। 54TIT&TT Sign. कृपया चैक के साथ 20/- रुपया अधिक जोड़कर भेजें। चैक/ड्राफ्ट/M.O. दिवाकर प्रकाशन, आगरा के नाम से निम्न पते पर भेजे। DIWAKAR PRAKASHAN मूल्य A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M.G. ROAD, AGRA-282 002 PH. : (0562) 351165,51789 हमारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सचित्र भावपूर्ण प्रकाशन पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम सचित्र भक्तामर स्तोत्र ३२५.०० सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग २) ५००.०० सचित्र भावना आनुपूर्वी २१.०० सचित्र णमोकार महामंत्र १२५.०० सचित्र कल्पसूत्र ५००.०० भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) १८.०० सचित्र तीर्थंकर चरित्र २००.०० सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ५००.०० मंगल माला (सचित्र) २०.०० सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग १) ५००.०० सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र ४२५.०० मंगलम् चित्रपट एवं यंत्र चित्र सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र २५.०० श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १५.०० भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) २५.०० श्री सर्वतोभद्र तिजय पहत्त यंत्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १०.०० श्री वर्द्धमान शलाका यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १५.०० Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम सिर्फ शुद्ध स्वर्ण-रजत के आभूषण एवं मनोहारी बरतन ही नहीं बेचते, किन्तु हम देते । भी हैं, जीवन को अलंकृत करने वाले मोती से उज्ज्वल एवं हीरे से चमकदार शुद्ध विचार।। 10. 1016 Eआत्मा की आवाज राजा मेघरथ, (भगवान शान्तिनाथ पूर्वभव में) ने एक शरणागत कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर के अंग-अंग काट कर दे दिये। निरीह मूक पशुओं का करुण क्रन्दन सुनकर नेमिकुमार का हृदय द्रवित हो उठा और वे विवाह के लिए सजे तोरण द्वार से बिना ब्याहे ही लौट गये। . महान् तपस्वी धर्मरुचि अणगार ने, चीटियों का नाश न होने देने के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की। श्रेणिक पुत्र महामुनि मेतार्य ने, शरीर एवं मस्तक पर बंधे गीले चमड़े की असह्य प्राणान्तक वेदना सहते हुए शरीर त्याग दिया अपने निमित्त से होने वाली एक मुर्गे की हिंसा को टालने के लिए। सोचिए, विचारिए, आप और हम उन्हीं आत्म-बलिदानी, दयावीरों, धर्मवीरों, करुणावतारों की सन्तान हैं, फिर ज क्यों हमारी आँखों के सामने हमारी मातृभूमि पर, ऋषि मुनि-तपस्वियों की तपो भूमि पर प्रतिदिन, हर सुबह लाखों, करोड़ों मासूम पंचेन्द्रिय प्राणियों की गर्दन काटी जाती है? उनका रक्त बहाकर भूमि ही अपवित्र किया जाता है उन्हें तड़पा-तड़पा कर दिल दहलाने वाली करुण चीत्कारों को अनसुना कर उनके शरीर के रक्त-मांस का क्रूर व्यापार किया जाता है ?? मानव जाति की मित्र तुल्य, राष्ट्र की पशु सम्पदा पर क्रूर दानवीय अत्याचार हो रहे हैं और हम चुप हैं !! इन राक्षसी कृत्यों को चुपचाप देखते सहते जा रहे हैं ? आखिर क्यों? कहाँ सो गई हमारी करुणा? क्यों मूर्छित हो गई है हमारी धर्म-बुद्धि ?? क्यों काठमार गया है, हमारे अहिंसक पुरुषार्थ को ?? उठिए ! संकल्प लीजिए ! अपने धर्म की, देश के गौरव की, मासूम पशु-पक्षियों की रक्षा कीजिए। उनकी हत्या, हिंसा रोकने के लिए राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक, गांधी के वीर पथ का अनुसरण कीजिए। जागिए ! जनता को जगाइए ! अहिंसा और करुणा की अनन्त शक्ति का चमत्कार पैदा कीजिए। - करोंड़ों, करोड़ों जनता की एक पुकार । पशुओं पर नहीं होने देंगे अत्याचार ॥ देश में बढ़ती हिंसा, कत्लखाने, शराबखाने बंद हो । हर घर में खुशी हो, हर व्यक्ति को आनन्द हो ॥ - नही विश्वासही परम्प) शाकाहार क्रान्ति के सूत्रधाररतनलाल सी. बाफना 'नयनतारा' : सुभाष चौक, जलगाँव : फोन : २३९०३, २५९०३, २७३२२, २७२६८ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधना के शिखर पुरुष ध्यान योगी। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का पावन समाधिस्थल श्री पुष्कर शुरु पावन धाम, गुरु पुष्कर मार्ग, उदयपुर श्री पुकह पावनधाम * सौजन्य * लाला रामनरायणजी, सत्य भूषणजी, पीयूष, पंकज जैन B. J. DUPLEX BOARDS LIMITED CORP. OFFICE : R-2, INDERPURI, NEW DELHI-110012 INDIA TEL. : (O)5713399,5754146, (R)2244000, 2242000 FAX. : 091-011-5754146 WORKS : NARELA ROAD, KUNDLI, DISTT. SONEPAT-131 028 HARYANA TEL. : 0118170855 Edital EmprivateDasainaatmak