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राजकुमार श्रेणिक
गुप्तचर सेठ सुभद्र के घर पर पहुंचा। सामने श्रेणिक बैठा दीख गया। गुप्तचर ने आदर पूर्वक प्रणाम किया। श्रेणिक ने उसे पहचान लिया। भीतर कक्ष में ले जाकर पूछाक्या बात है?
महाराज! आपके पिताश्री (तुम यहाँ कैसे आये ?
मृत्युशय्या पर पड़े हैं, बार-बार आप से मिलने की इच्छा प्रकट कर रहे हैं,
आप तुरन्त चलिए।
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गुप्तचर ने चिलाती कुमार के अत्याचार और प्रसेनजित की बीमारी का पूरा वृतांत श्रेणिक को कह सुनाया।
गुप्तचर के मुख से मगध की दुर्दशा के समाचार : सुनकर श्रेणिक की आँखें भर आईं-1
कुमार! नगर के बाहर हमारे दो अश्वारोही तैयार खड़े हैं।)
आप अविलम्ब चलें।
पिताजी ने भले ही मुझे अपमानित किया, परन्तु संकट के समय उनकी सेवा करना
मेरा धर्म है।
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