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राजकुमार श्रेणिक
चादर को घड़े में निचोड़ लिया बार-बार ऐसा करने पर ओस के पानी से धड़ा भर गया।
सभी राजकुमार खाली घड़े लिये महाराज के सामने उपस्थित हुए परन्तु श्रेणिक ओस-जल से भरा घड़ा सेवक के सिर पर रखवाकर ले आये। राजा ने श्रेणिक
आपके सभी भाई खाली घड़े Io लेकर आये हैं फिर आपने ओस ।
जल से घड़ा कैसे भरा ?
पूछा
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श्रेणिक ने अपनी तरकीब बताई। सुनकर राजा प्रसेनजित मन में बहुत प्रसन्न हुए। सोचने लगे
वास्तव में राजा को प्रजा से थोड़ा-थोड़ा कर इसी प्रकारे ग्रहण करना चाहिए जिससे राजकोष भी भर जाय और प्रजा को भी पीड़ा
नहीं पहुंचे।
परन्तु ऊपर से अप्रसन्नता दिखाते हुए बोलेश्रेणिक ! आपने हमारी आज्ञा का ठीक से पालन नहीं किया है, हम आपसे अप्रसन्न हैं।
सब कुछ ठीक करते हुए भी महाराज मुझे गलत समझ रहे हैं। MARA
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श्रेणिक मन में बहुत दुखी हुआ। उदास मन लिए वह चुपचाप चला गया।
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