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एक दिन श्रेणिक और सुभद्र सेठ घूमते हुए घर के पिछवाड़े के बाड़े में चले गये। वहाँ लाल बालू का ढेर देखकर सेठ नें सेवकों को डाँटा
यह रेत यहाँ क्यों रखी है? इसे बाहर फैंक कर घर की सफाई करो।
कुछ दिन बाद एक विदेशी व्यापारी (बनजारा) वेणातट नगर में आया। उसने वहाँ के राजा से प्रार्थना की
'महाराज, मुझे तेजंतरी
बालू की जरूरत है, जिस 60 किसी के पास हो, मैं मुँहमाँगी
कीमत देकर लेना चाहता हूँ।
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राजकुमार श्रेणिक
सेठ जी, विदेशों से आये हुए जहाजों की सफाई में यह बालू रेत निकली है, लाल-लाल चमकदार कण देखकर हमने यहाँ ढेर लगा दिया है।
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श्रेणिक ने बालू कण हाथ में लेकर देखा, उसने सेठ से कहा- सेठ जी, यह तेजंतरी
बालू है। पारस पत्थर के कण इस में मिले हुए हैं इसे फिक वाइये मत, अपने गोदाम में सुरक्षित रखवा दीजिए।
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सुनकर सेठ चकित हो गया। सेठ के आदेश से घड़ों में भरकर रेत गोदाम में सुरक्षित रख दी गई।
राजा ने नगर में घोषणा करवा दी
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जिस किसी भाग्यवान के पास तेजंतरी बालू हो, वह महाराज को सूचित करे। उसे मुँहमाँगी
कीमत दी जायेगी।
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