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राजकुमार श्रेणिक नदी पार करते ही वेणातट गाँव आ गया। सुभद्र सेठ ने सोचा
'अब इस महामूर्ख से पिंड छुड़ा लेना ही अच्छा है, संगत
भली न मूर्ख की .....
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वह श्रेणिक से बोलाभानजे, मेरा गाँव आ गया है। तुम अभी इस आम की छाया में बैठो,
मैं घर जाकर तुम्हारे ठहरने की | व्यवस्था करके बुलावा भेजता हूँ।
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श्रेणिक अपनी छतरी तानकर आम की छाया में बैठ गया। यह देखकर तो हँसते-हँसते सुभद्र सेठ के पेट में बल पड़ गया।।
यह तो वास्तव में महामूखों का भी
गुरु है।
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आम के नीचे छतरी तानकर बैठने का अर्थ है- वृक्ष पर बैठे पक्षी बीट कर दें तो छती ताजने से उससे बचाव हो जाता है।
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