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राजकुमार श्रेणिक
मगधपति महाराज श्रेणिक भगवान महावीर के परम भक्त राजाओं में प्रमुख थे। वह इतिहास प्रसिद्ध शिशुनाग वंशी राजा थे।
जैन इतिहास में उनका श्रेणिक भम्भासार नाम प्रसिद्ध है जबकि इतिहासकार विम्बिसार श्रेणिक लिखते हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार राजमहल में आग लगने से भंभा (भेरी) बचाकर लाने से उनका नाम 'भंभासार' प्रसिद्ध हुआ।
- श्रेणिक के पिता राजा प्रसेनजित भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी श्रावक थे। श्रेणिक का कुल धर्म निर्ग्रन्थ (जैन) धर्म ही है किन्तु मगध से निर्वासन काल में एक बौद्ध आचार्य के सद्व्यवहार से प्रभावित होकर तथा उनके द्वारा शीघ्र ही मगध सम्राट बनने की भविष्य वाणी के कारण श्रेणिक उनके प्रभाव में कुछ समय तक रहे। यही कारण है कि महाराज चेटक की पुत्री के साथ विवाह के समय वे जैन धर्म से दूर थे किन्तु बाद में चेलणा के प्रयत्नों व अनाथी मुनि के संपर्क से श्रेणिक पुनः निर्ग्रन्थ धर्म के निकट आये। आगे चलकर भगवान महावीर के परम भक्त बन गये।।
श्रेणिक अत्यधिक बुद्धिमान, साहसी, पराक्रमी और कुशल शासक थे। राज सिंहासन पर बैठने से पूर्व उन्हें एक घुमक्कड का जीवन बिताना पड़ा और बहुत समय तक गुमनाम रहे। उनकी विलक्षण बुद्धि व उच्च कुलीन लक्षणों से प्रभावित होकर वणिक कन्या नंदा ने उसे पति रूप में प्राप्त किया। नंदा स्वयं अत्यन्त बुद्धिमती, धर्मशीला थी। नंदा के संस्कार उसके पुत्र अभय कुमार में पल्लवित हुए।
श्रेणिक-अभय कुमार के जीवन से सम्बधित अनेक रोचक कथाएँ जैन साहित्य में उपलब्ध हैं। प्रस्तुत चित्रकथा में केवल श्रेणिक को मगध सिंहासन पर आरूद्ध होने तक की रोचक घटना ली गई है। राजगृह को पूर्व भारत की शक्तिशाली समृद्ध नगरी बनाने का श्रेय भी श्रेणिक को ही है।
इस रोचक ऐतिहासिक कथा का आलेखन श्रमणसंघ के विना आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने किया है। उनके अनुग्रह के प्रति हम कृतज्ञ हैं।
-महोपाध्याय विनयसागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस'
लेखक : आचार्य श्री देवेन्द्र नि ।
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