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राजकुमार श्रेणिक
प्रसेनजित ने श्रेणिक को छाती से लगा लिया
नगर के बाहर वृक्ष के नीचे दो घोड़े तैयार खड़े थे। श्रेणिक एक घोड़े पर चढ़ा, दूसरे पर गुप्तचर चढ़ा। दोनों राजगृह में आ पहुँचे। श्रेणिक ने पिता को प्रणाम किया
वत्स ! सबसे बड़ी भूल तो मैंने की। हीरे को मिट्टी में फेंक दिया और कंकर
को मुट्ठी में बाँध लिया।
पिताजी, बिना पूछे घर छोड़कर चले जाने की मेरी भूल क्षमा करें।
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अगले दिन श्रेणिक का राज्याभिषेक किया गया। प्रसेनजित ने अपने हाथ से राज मुकुट श्रेणिक के मस्तक पर रखा। सभी लोग एक साथ बोल उठे
महाराज प्रसेनजित के (उत्तराधिकारी युवराज श्रेणिक
की जय...
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11/
महदर
श्रेणिक के राज्याभिषेक की खबर चिलाती कुमार ने सुनी तो वह अपने दुष्ट नीच मित्रों के साथ राजगृह छोड़कर जंगलों में भाग गया।
समाप्त
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