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रामकुमार श्रेणिक उसने और भी कई परीक्षाएँ ली। हर परीक्षा में श्रेणिक स्नान आदि से निवृत हुआ। भोजन कर श्रेणिक की चतुरता स्वभाव की शालीनता प्रकट हुई। चुकने पर सेठ ने कहानंदा समझ गई
(व्यक्ति की महानता उसकी वाणी से न नहीं, कार्य प्रणाली से ही प्रकट होती
भानजे ! अब है। यह अवश्य ही कोई उच्चकुलीन ।
घर पर बैठे क्या करोगे? और बुद्धिमान पुरुष है।
आओ, हम दुकान पर
चलते हैं।
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श्रेणिक सेठ के साथ दुकान पर आकर बैठ गया। उस दिन सेठ की दुकान पर दूर-दूर के कई बड़े व्यापारी आये। सायंकाल धन की थैली भरकर सेठ घर पर आया, और अपनी पुत्री से बोला
बेटी, यह मेहमान तो बड़ा भाग्यशाली दीखता है। आम एक ही दिन में महीनों
की कमाई हो गई।
धीरे-धीरे नंदा और श्रेणिक का परस्पर परिचय बढ़ता गया। एक दिन नंदा ने पिता से कहा
पिताजी, आप ने एक दिन एक स्वप्न देखा था न? लगता है वह अब सच होने वाला है।
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हाँ बेटी, भाग्य से घर बैठे। ही कल्पवृक्ष आ गया है, सोचता हूँ अब इस कल्पवृक्ष को घर-VS आँगन में ही रोप कर रखलें।/20
कुछ दिन बाद सेठ ने श्रेणिक के साथ नंदा का विवाह
कर दिया। श्रेणिक घर जवाई बनकर रहने लगा।
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