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सुभद्र सेठ अपने घर आ पहुँचा। उसकी रूपवती कन्या नन्दा लोटे में गर्म जल लेकर आई। हाथ-पैर धोकर सुभद्र विश्राम करने लगा तो नन्दा ने पूछा
पिताजी! हर बार तो आप जल्दी लौट आते हैं, आज इतनी देर क्यों हो गई
सेठ ने कहा
बेटी, सबसे पहले उसने मुझे 'मामा' कहकर पुकारा। यह तो 'जान न पहचान मैं तेरा मेहमान' वाली बात हुई न ?
पिता जी, मुझे वह युवक बड़ा रहस्यमय लगता है। उसकी सब बातें सुनाइए।
राजकुमार श्रेणिक
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सेठ हँसकर बोला
बेटी, एक महामूर्ख युवक साथ हो गया था, उसकी ऊल-जलूल बातें सुनते-सुनते इतना समय लग गया।
पिताजी, ऐसी क्या बातें कीं उसने, जरा मुझे भी तो बताइए न ?
सेठ ने एक-एक करके सभी बातें सुनाईं और फिर खूब जोर से हँसा
अब तू ही बता, बेटी, ऐसा महामूर्ख पल्ले पड़ जाये तो क्या करें?
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पिताजी, मुझे तो वह युवक मूर्ख नहीं, अपितु बड़ा बुद्धिमान लगता है। उसकी हर बात में कुछ अर्थ है।
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