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रामकुमार श्रेणिक तभी गाँवं का एक आदमी मिल गया। सुभद्र ने पूछा- दोंनो गाँव में मुखिया नन्दीनाथ के पास पहुंचे। बोले
बाबा ! हम कुशाग्रपुर से भाई! यह कौन-सा यह नंदी ग्राम है, आये हैं भूख लगी है। क्या गाँव है, किस जाति ब्राह्मणों की बस्ती आपके गाँव में यात्रियों के के लोग रहते हैं है, बाबा नन्दीनाथ लिए कोई भोजन की यहाँ। यहाँ के मुखिया
व्यवस्था नहीं है?
व्यवस्था तो है, परन्तु कुशाग्रपुर वालों को भोजन तो दूर हम एक ठूट पानी भी नहीं पिलाते। वहाँ के राजा प्रसेनमित ने हम पर/
बहुत अत्याचार किये हैं।
अपमान का कड़वा चूंट पीकर श्रेणिक और सुभद्र सेठ वहाँ से आगे चल पड़े। रास्ते में एक बौद्ध विहार (मठ) मिला। दोनों यात्री मठ में पहुंचे। वहाँ के आचार्य ने प्रेमपूर्वक दोनों यात्रियों का स्वागत किया और भोजन कराया। विश्राम कर जब दोनों यात्री आगे चलने को हुए तो आचार्य ने श्रेणिक को आशीर्वाद देते हुए कहा
तेजस्वी युवक ! आप के शुभ लक्षण बोलते हैं शीघ्र ही आप किसी राज्य के प्रतापी सम्राट
बनेंगे।
यदि आपका वचन (सत्य सिद्ध हुआ तो मैं आप को अवश्य ही राज-सम्मान से
विभूषित करूंगा।
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