Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016
Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 15
________________ रामकुमार श्रेणिक ऐसा निश्चय कर श्रेणिक वेष बदलकर नगर से बाहर निकला और पश्चिम दिशा में चल पड़ा। श्रेणिक को मन ही मन बहुत क्रोध आया। परन्तु पिता के सम्मान का ध्यान रखकर वह चुपचाप वहाँ से निकल गया। एकान्त में बैठकर सोचने लगा जहाँ मेटरी योग्यता का उपहास होता हो वहाँ एक क्षण भी नहीं रहना चाहिए। ALAM W AN 10- MART HTTARAISENSE ArA Sandee STANT Vram AAG Pouginigre a t ala HOM ललन कुछ दूर अकेला चलते-चलते श्रेणिक उकता गया। तभी उसे एक प्रौढ़ व्यक्ति आगे जाता हुआ दीखा। वह था वेणातट का सेठ सुभद्र। श्रेणिक तेज चलकर उसके पास पहुंचा और पुकारा- wife-topasa सुभद्रसेठ ने चौंककर पीछे देखा, मामा कहने पर उसे आश्चर्य हुआ, वह रुक गया। तब तक श्रेणिक भी उसके पास आ पहुंचा। बोला अच्छा साथी मिलना मामा, हम दोनों musline एक ही दिशा में जा रहे हैं तो तो भाग्य की बात है, चलो ठीक ही है! साथ-साथ चलो तो यात्रा अच्छी रहेगी। रास्ता आराम से कटेगा, एक से दो भले। मामा! Awaa aisexyc a SAVA M Jain Education International For Personal use only wwwjainelibrary.org

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