Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016 Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 8
________________ समय के साथ राजा प्रसेनजित वृद्ध हो गये। एक दिन उन्होंने अपने महामंत्री वाचस्पति को 'बुलवाया आओ ! महामंत्री ! मैं बहुत देर से आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा हूँ। प्रसेनजित के मुख पर . एकदम चिंता की रेखा उभर आईं। राजकुमार श्रेणिक Jain Education International मेरा अहोभाग्य है जो महाराज ने याद किया। क्या आदेश है महाराज ! महामंत्री ! मेरी उम्र अब ढलती जा रही है ! इसलिए मगध का राजपाट किसी सुयोग्य हाथों में सौंप देना चाहता हूँ। हाँ, वो तो है, परन्तु महामंत्री, आपको पता नहीं, रानी तिलकवती के पिता भीलराज ने मुझसे यह वचन लिया था कि तिलकवती का पुत्र ही मगध राज्य का उत्तराधिकारी होगा। दुर्भाग्य की बात है चिलाती कुमार राज्य का उत्तराधिकारी होने के योग्य नहीं है। .. यदि मैं उसका राजतिलक कर देता हूँ तो मगध के राज परिवार में ही गृह-युद्ध हो जायेगा, जिसका परिणाम होगा सर्वनाश.... इसमें चिंता की क्या बात है महाराज ! राजकुमार श्रेणिक वैसे भी आपके ज्येष्ठ पुत्र 'हैं और बुद्धि-पराक्रम, न्याय-नीति आदि, प्रत्येक बात में पारंगत हैं। For Private & Personal Use Only. 227525 PHON www.jainelibrary.orgPage Navigation
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