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रामकुमार श्रेणिक
दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही सभी राजकुमार घड़ा लेकर उद्यान में पहुँचे और घास पर गिरी ओस की बूँदों को घड़े में टपकाकर घड़ा भरने का प्रयत्न करने लगे।
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अब यह पानी
नहीं सोखेगा।
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घड़ा
राजकुमार श्रेणिक भी घड़ा लेकर नदी किनारे पहुँचे। पहले कोटे घड़े को नदी के पानी में डुबोगा, कुछ देर बाद निकाला, देखा, अब घड़ा पूरा भीग गया है।
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परन्तु घड़ा उस बूंद बूंद पानी को सोख लेता, और सूखा का सूखा ही रहता। पानी से भरना तो दूर, घड़ा गीला भी नहीं हुआ।
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फिर घास पर एक सफेद पतली चादर बिछाई। ओस कणों से चादर भीग गई।
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