Book Title: Rajkukmar Shrenik Diwakar Chitrakatha 016
Author(s): Devebhdra Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 9
________________ राजकुमार श्रेणिक | अपनी बात जारी रखते हुये प्रसेनजित ने कहा- प्रसेनजित की बात सुनकर महामंत्री वाचस्पति कुछ समय महामंत्री ! आप विलक्षण बद्रि तक सोचते रहे फिर बोलेवाले हैं सोचिए, कुछ ऐसा उपाय कीजिये सॉप भी मर महाराज, राजकुमार श्रेणिक को /किसी बहाने कुछ समय के लिए मगध जाय और लाठी भी न टूटे।। से दूर भेज दिया जाय तो गृह-युद्ध टल सकता है। उनके पीछे आप चिलाती कुमार का राज-तिलक कर दें। फिर जैसा होगा देख लेंगे.... (OM ON गराएजसम राजा प्रसेनजित के संकेतानुसार मंत्री ने एक योजना बनाई।। दूसरे दिन राजाज्ञा के अनुसार 900 राजकुमारों को भोजन-शाला में पंक्तिबद्ध बैठाकर भोजन परोसा गया। श्रेणिक सबके बीच में बैठे। अभी राजकुमार भोजन प्रारम्भ कर ही रहे थे कि अचानक भूखे शिकारी कुत्ते भौं-ौं कर भोजन-शाला पर टूट पड़े। डर के मारे सभी राजकुमार उठ-उठकर भाग गये। CHOPRIL COM Jäin Education International For Pre & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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