Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र.कल्प ॥
MIRROR
।।१९।।
विजय कस्तूरसूरीश्वरजी महाराज साहेब; विद्वदूल्लभ परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय धर्मधुरंधरसूरीश्वरजी महाराज साहेब आदिना सान्निध्यमां अंजनशलाका संबंधी तेओश्रीना बहोळा अनुभव-ज्ञानखजानामांथो तेमज देओश्रीनी प्रतोमांनी टिप्पण के नोधपोथीमांनी विशिष्ट नोंधोना आधारे ज, विविध प्रतोनो आश्रय न लेता प्रतिक्रमण विधिनी जेम सरळताथी एक पछी एक विधान थया ज करे तेवो एकाद प्रत तैयार करवा जिनशासनशणगार परमपूज्यपाद् आचार्यदेव श्रीमद् विजय | चंद्रोदयसूरीश्वरजी महाराज साहेब तथा सरलस्वभावी परमपूज्यपाद् गुरुदेवश्री आचार्यदेव श्रीमद् विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब मुलुंड, चोपाटी, जोगेश्वरी, वालकेश्वर, नागेश्वर, बारामती, बाबुलमाथ-मुंबई, सुरत-दिर रोड़, पाल ताणा-साँडेराव, आरीसा भवन, समवसरण के पीपरलानी अंजनशलाका प्रसंगे वारंवार प्रेरणा करता रह्या.
तेओश्रोनी शुभाशीर्वाद समन्वित आज्ञानुसार पालीताणा वि. सं. २०४० ना चातुर्मापमा पूज्य गुरुदेवश्रीनी साथी साथ अमोए तेमन मुनि श्री कैलासचंद्र वि; मुनि श्री निर्मलचंद्र वि; मुनि श्री प्रशमचंद्र वि. तथा मुनि श्री विबुधचंद्र वि. आदिए मा सक्षमणनी तपश्चर्या करी. ते समयनी शांतिनो सदुपयोग करी अंजनशलाका विधि संबंधी संपूर्ण सामग्री संगृहीत करी अने वि. सं. २०४१मा सुरतमा पूज्य गुरुदेवश्री साथे सामुदायिक सिद्धितपना समये संगृहत सामग्रंन संशोधन-संकलन पूज्य वडीलोनी सूचना-सलाहना आधारे करवामां आव्यु.
विधि-विधानना महत्त्वपूर्ण आ ग्रंथनुं संशोधन-संकलन अनुभवीना अनुभव-मार्गदर्शन वगर अशक्य ज गणाय. तेथी जेमनी पावननिश्रामां अनेक अंजनशलाकामहोत्सव थया छे तेवा प. पू. आ. श्री विजय चंद्रोदय सूरीश्वरजी महाराज तथा विद्वद्वर्य
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AA-फरकार
॥१९॥
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