Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र. कल्प
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माटे विधि-विधानना आ शिरमोर समान ग्रंथनुं संपादन ए जीवननुं प्रथम छतां उत्तम साहस छे, अने तेमां तेओ सारा सफल बन्या छे, एम मने जगायुं छे, तेमणे आ विषयां ऊं खेडाण कर्यु आदर्यु छे, तो आ तके हुं इच्छुके महापूजन अने नंद्यावर्तमहापूजन जेवां मंगलमय विधानोनुं पण, आजनी परिस्थितिने अनुकूल पडे तेधुं अने सुचारु संस्करण तेओ तैयार करे.
साधु अमारा समुदायनी शोभा छे, आवा साधुओ द्वारा समुदाय, शासननी - संघनी सेवा करवानी सरस तक साधी छे, ए पण मारा- अमारा सौ माटे गौरवनी बात छे. शासनदेव तेमनामां संघनी अने समुदायनी आवी सेवा करशनुं सामर्थ्य पूरो- प्रेरो तेवी प्रार्थना साथे .
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शीलचन्द्र विजय ता. २५-२-८६
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