Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
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मारा जेवा केलाको पैकी एक मुनिराज श्री सोमचन्द्रविजयजी पण खरा. तेमना पूज्य वे गुरुदेवोना सीधा मार्गदर्शन ठळ तेमणे वारंवार अंजनविधानोमां सक्रिय भाग तथा रस लीधो, अने ते वखते पूज्यो साथै तथा कुशळ विधिकारक गृहस्थ साना परामर्शने परिणामे, तेमणे वडीलोना आदेश अने मार्गदर्शन अनुसार, उपरना विचारने अमलमां मूकवानो निर्णय करी, ते माटे पुरुषार्थ आदर्यो. तेमना वे अढी वर्षना अविरत - सखत पुरुषार्थनुं परिणाम प्रस्तुत प्रकाशन छे, एम कहे जोइए. आ काम माटे तेमणे संस्कृत पंडितो, कुशळ विधिकारक सद्गृहस्थो, विधिविधान विशेषज्ञ पूज्य आचार्यादि मुनिराजो वगेरे सौनो पत्र द्वारा तथा प्रत्यक्ष संपर्क कर्यो छे, सौना अभिप्रायो अने मार्गदर्शन मेळव्यां छे, अनेक प्राचीननवीन प्रतनुं सूक्ष्म अवगाहन कर्यु छे अने ते बधाथी वधीने पोताना पूज्य गुरुवर्योना शुभाशीर्वादनुं बळ मेळव्युं छे. 'अने आधी ज ओ आ प्रकाशनने - संपादन ने खूब सारुं कही शकाय तेवुं बनावी शक्या छे.
आ प्रकाशनथी अंजनशलाकाना विधानमां खूब ज सरळता अने विशेष शुद्धि आवशे, अशुद्धि अने अविधिथी बच एज आ प्रकाशननुं लक्ष्य होवाथी, आना आधारे विधान करवा द्वारा विधि अने शुद्धि सचवावाथी आराधक आत्माओ माटे विशेष लाभ कारण बनशे.
मुनिश्री सोमचन्द्रविजयजी विशे कहेतुं जोइए के तेमणे नानी उमरे दीक्षा लइने, गुरुजनोनी कृपानी छायामां • ज्ञानाध्ययन करीने तेने पचान्युं छे अने तेना परिपाकरूप विनय, सौम्यता अने सरळता-आ गुणो सारा प्रमाणमां विकसाच्या छे, मने तेमना आ गुणो प्रत्ये विशेष लगाव छे अने आ गुणो हजीय विकसे तेम मारी अपेक्षा छे. तेमने
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