Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Hemchandracharya, K V Apte
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 6
________________ अनुक्रमणिका प्रस्तावना पादानुसार विषय (विषयके अगले अंक सूत्रों के अनुक्रमांक हैं । ) प्रयमपाद प्राकृत ओर आर्ष १-३, समास में स्वरोका ह्रस्वोभवन और दीर्धीभवन ४, संधि ५-१०, शब्दमें अन्त्य ब्यञ्जनके विकार ११-२४ ङ्ञ् ण् नके विकार २५, अनुस्वारागम २६-७, अनुस्वारलोप २८-२९, अनुस्वारका वैकल्पिक विकारे ३०, लिंगविचार ३१-३६, अकारके आगे विसर्गका विकार ३७, निर् और प्रति शब्दों के विकार ३८, आदिस्वरविकार ३९.१७५, स्वरके आगे अनादि असंयुक्त व्यञ्जनके विकार १७६-२७१ । द्वितीयपाद संयुक्त व्यञ्जनके विकार १.११५, स्थितिपरिबृत्ति ११६-१२४, कुछ संस्कृत शब्दोंको होनेवाले आदेश १२५.१४४, प्रत्ययोंको होनेवाले आदेश १४५-१६ , भवार्थी प्रत्यय १६३, स्वार्थे प्रत्यय १६४, कुछ शब्दों के आगे आनेवाले स्वार्थे प्रत्यय १६५-१७३, गोणादि निपात शब्द १७४, अव्ययोंके उपयोग १७५- १८ । तृतीयपाद वीप्सार्थी पदके आगे स्यादिके स्थानपर वैकल्पिक भकार १ संज्ञारूपविचार २-५७, सर्वनामरूप विचार ५८-८९, युष्मद्के रूप ९०.१०४, अस्मद्के रूप १०५-११७, संख्यावाचक शब्दोंके रूप ११८ १२३, विक्तिरूपोंके बारेमें संकीर्ण नियम १२४-१३०, विभक्तियोंके उपयोग १३१-१३७, नामधातु १३८, बर्तमानकालमें लगनेवाले प्रत्यय १३९-१४५, अस घातुके वर्तमानकालके रूप १४६-१४८, प्रेरक प्रत्यय १४९.१५३, प्रत्यय लगते समय होनेवाले विकार १५४-१५९, धातुके कर्मणि अंग १६०-१६१, भूतकाल १६२-१६३, अस धातुका भूतकाल १६४, विध्यर्थ-प्रत्यय-आदेश १६५, भविष्यकाल १६६-१७२, विध्यर्थ-आज्ञार्थ-प्रत्यय १७३-१७६, प्रत्ययोंको होनेवाले ज्ज ओर ज्जा आदेश १७७-१७८, संकेतार्थ १७९-१८०, शतृ-ज्ञानश्-प्रत्ययोंके आदेश १८१, शतृ-शानश्-प्रत्ययान्तॊके स्त्रीलिंगी अंग १८२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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