Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi
Author(s): Maheshbhai F Sheth
Publisher: Siddhachakra Prakashan

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Page 23
________________ (मार्या) वापी-कूप-हदा-म्बुधि-तडाग-पल्वल-नदी-निर्झरादिभ्यः । ___ आनीतै विमलजलै - स्तानधिकं पूरयन्ति च ते ।। (शा€o) कस्तूरी-धनसार-कुंकुम-सुरा-श्रीखंड-कल्लोलक- हविरादि-सुगन्धवस्तुमिर-लंकुर्वन्ति तत्संवरम् । देवेन्द्रावर-पारिजात-बकुल-श्री पुष्पजातीजपा,-मालाभिः कलशाननानि दधते संप्राप्तहारस्त्रजः ।। ईशानाधिपते-निजांककुहरे संस्थापितं स्वामिनं, सौधर्माधिप-निर्मिताद्भूत-चतुः-प्रांशूक्ष-शृंगोद्गतः। धारावारिभरैः शशांकविमलैः सिंचन्त्यनन्यातयः शेषाश्चैव सुराप्सरः-समुदयाः कुर्वन्ति कौतुहलम् ।। वीणा-मृदंग-तिमिलाईक-राहनूर - ठक्का-हुबुक्क-पणव-स्फुट-काहलाभिः । सवेणु-झमरक-दुंदुभि-खिंखिणीभिः, वाचैः सृजन्ति सकलाप्सरसो विनोवम् ।। (वसंत) शेषाः सुरेश्वरास्तत्र गृहीत्वा करसम्पुटैः । कलशांत्रिजगन्नाथ नपयन्ति महामुदः ।। (पध) तस्मिंस्ताइश उत्सवे वयमपि स्वर्लोकसंवासिनो, भ्रान्ता जन्मविवर्तनेन विहितश्रीतीर्थसेवाधियः। जातास्तेन विशुद्धबोधमधुना संप्राप्य तत्पूजनं, स्मृत्वैतत् करवाम विष्टपविभोः स्नात्रं मुदामास्पदम् ।। (शाईल) ૧૯

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