Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi Author(s): Maheshbhai F Sheth Publisher: Siddhachakra PrakashanPage 37
________________ ४. सुभांति योथी : सुभांति बर्धने नमोऽर्हत् ( राग महान्ता० ) आनन्दाय प्रभव भगवन्नंगसङ्गावसान, आन्ददाय प्रभव भगवन्नंगसङ्गावसान । आनन्दाय प्रभव भगवन्नंगसङ्गावसान आन्ददाय प्रभव भगवन्नंगसङ्गावसान ||१|| लाभप्राप्तप्रसृमरमहा-भागनिर्मुक्तलाभं, देवव्रातप्रणतचरणांभोज हे देवदेव । जातं ज्ञानं प्रकटभुवन-त्रास सज्जंतुजातं, हंस श्रेणी - धवलगुणभा सर्वदा जातहंस ||२|| जीवन्नंतर्विषमविषय-च्छेदक्लृप्तासिवार, जीवस्तुत्यप्रथितजननांभोनिधौ कर्णधार । जीवप्रौढिप्रणयनमहासूत्रणासूत्रधार, जीवस्पर्धा रहितशिशिरे - न्दोपमेयाब्दधार ||३|| पापाकांक्षा-मथनमथन-प्रौढविध्वंसिहेतो, क्षान्त्याघास्था-निलय-निलय श्रान्तिसंप्राप्ततत्त्व । साम्यक्राम्यन्नयननयन- व्याप्तिजातावकाश, स्वामिन्नन्दा - शरणशरण प्राप्तकल्याणमाल ।।४।। जीवाः सर्वे रचितकमल त्वां शरण्यं समेताः, क्रोधाभिख्या- ज्वलनकमल-क्रान्तविश्वारिचक्रम् । भव्य श्रेणिनयनकमल प्राग्विबोधकभानो, मोहासौख्य-प्रजनकमल-च्छेदमस्मासु देहि ||५|| उपूर : निरामयत्वेन मलोज्झितेन, गन्धेन सर्वप्रियताकरेण । गुणैस्त्वदीयातिशयानुकारी, नवाङ्गमागच्छतु देवचन्द्रः ||१|| नमुत्थुए ... धूप बर्धने (राग स्त्रग्धररा ) ऊर्ध्वाधोभूमिवासि० 33Page Navigation
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