Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi
Author(s): Maheshbhai F Sheth
Publisher: Siddhachakra Prakashan

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Page 36
________________ ૩૨ 3. मुसुभालि श्री : शुभांति बने नमोऽहंत (२|| शिषell) प्रभोः पादद्वढे वितणरसुधाभुक् शिखरिणी, वसंभूतश्रेयो-हरिमुकुटमाला शिखरिणी । विभाति प्रश्लिष्टा समुदयकथावै शिखरिणी, नतेजःपूंजाळ्या सुखरसनकान्त्या शिखरिणी ।।१।। जगद्वन्द्या मूर्तिः प्रहरणविकारैश्च रहिता, विशालां तां मुक्तिं सपदि सुददाना विजयते । विशालां तां मुक्तिं सपदि सुददाना विजयते, दधाना संसार-च्छिदुर-परमानन्दकलिता ।।२।। भवाभासंसारं सदिहरणकम्बं प्रतिनयत्, कलालं वः कान्तप्रगुणगणनासादकरणः । भवाभासंसारं सदिहरणकम्बं प्रतिनयत्, कलालं वः कान्तप्रगुणगणनासादकरणः ।।३।। जयं जीवं भानुं बलिनमनिसं संगत इला-विलासः सत्कालक्षितिरलसमानो विसरणे । जयं जीवं भानुं बलिनमनिसं संगत इला-विलासः सत्कालक्षितिरलसमानो विसरणे ।।४।। समाद्यद्वेषोऽर्हन् नवनमनति-क्रान्तकरणै-रमाद्यद्वेषोऽर्हन नवनमनति-क्रान्तकरणैः । सदा रागत्यागी विलसदनवद्यो विमथनः, सदा रागत्यागी विलसदनवद्यो विमथनः ।।५।। यक्षम : घ्राणतर्पणसमर्पणापटुः क्लृप्तदेवघटनागवेषणः । यक्षकर्दम इनस्य लेपनात्, कर्दमं हरतु पापसंभवम् ।।१।। नमुत्थुए... धूप लर्धने (२२सध) ऊर्ध्वाधोभूमिवासि०

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