Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi
Author(s): Maheshbhai F Sheth
Publisher: Siddhachakra Prakashan

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Page 38
________________ ३४ ५. सुभाशलि पांयमी : दुसुमालसिसने नमोऽहत् (20संततिGSI) संसारवारि-निधितारण देवदेव !, संसारनिर्जित-समस्तसुरेन्द्रशैल ।। संसारबन्धुरतया जिनराजहंस, संसारमुक्त कुरु मे प्रकटं प्रमाणम् ।।१।। रोगाविमुक्तकरणप्रतिभाविलास, कामप्रमोद-करणव्यतिरेक-घातिन् । षष्ठाष्टमादिकरण-प्रतपप्रवीण मां, रक्ष पातकरण-श्रमकीर्णचित्तम् ।।२।। त्वां पूजयामि कृतसिद्धिरमाविलासं, नम्रक्षितीश्वर-सुरेश्वर-सद्विलासम् । उत्पन्नकेवलकला-परिभाविलासं, घ्यानाभिधा-नमकरुड्वदनाविलासम् ।।३।। गम्यातिरेकगुणपाप-तरावगम्या, न व्याप्नुते विषयराजिर-पारनव्या । सेवाभरेण भवतः प्रकटेरसेवा, तृष्णा कुतो भवति तुष्टिमतां च तृष्णा ।।४।। वदे त्वदीयवृषदेशनसा देव, जीवातुल-क्षितिमनन्त-रमानिवासम् । आत्मीयमानकृतयोजन-विस्तरादयं, जीवातुल-क्षितिमनन्तरमाविलासम् ।।५।। वासक्षेप : नैर्मल्पशालिन इमेऽप्यजडा अपिंडा, संप्राप्तसद्गुणगणा विपदां निरासाः । त्वद्ज्ञानवज्जिनपते कृतमुक्तिवासा, वासाः पतन्तु भविनां भवदीयदेहे ।।१।। नभुत्युएi... धूप माने (2101 २१२URI) ऊर्ध्वाधोभूमिवासि०

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