Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi
Author(s): Maheshbhai F Sheth
Publisher: Siddhachakra Prakashan

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Page 21
________________ न चापि गुणहीनता न परमप्रमोदक्षयो, जिनार्चनकृतां भवे भवति चैव निःसंशयम् । एतत्तत्वं परम-मसमा-नन्दसम्पनिदानं, पातालौकःसुर-नर-रहितं, साधुभि; प्रार्थनीयम् । सर्वारम्भोपचयकरणं श्रेयसां सन्निधानं, साध्यं सर्वैर्विमलमनसा पूजनं विश्वभुर्तुः ।। ધૂપ લઈને (શાર્દૂલવિક્રિડિત) कर्पूरागरू-सिल्हचन्दनबला-मांसीसशैलेयकश्रीवासदुम-धूपराल-घुसृणै-रत्यन्तमामोदितः । व्योमस्थः प्रसरच्छशांककिरण-ज्योतिः प्रतिच्छादको, धूमो धूपकृतो जगत्त्रयगुरोः सौभाग्यमुत्तंसतु ।। १ ।। (आर्या) सिद्धाचार्यप्रभृतीन्, पंचगुरून् सर्वदेवगणमधिकम् । क्षेत्रे काले धूपः, प्रीणयतु जिनार्चनारचितः ।। नमुत्युए..... इसुभारती ने (वसंतHिESI) जन्मन्य नन्तसुखद भुवनेश्वरस्य, सुत्रामभिः कनकशैल-शिर:शिलायाम । स्नात्रं व्यधायि विविधाम्बुधि-कूपवापी-कासारपल्वल-सरित्सलिलैः सुगन्धैः ।। (उपजाति) तां बुद्धिमाधाय हृदीह काले, स्नात्रं जिनेन्द्रप्रतिमागणस्य । कुर्वन्ति लोका : शुभभावभाजो, महाजनो येन गतः स पन्थाः ।।

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