Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi
Author(s): Maheshbhai F Sheth
Publisher: Siddhachakra Prakashan

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Page 22
________________ * सुमांसी सर्धने परिमल - गुणसार-सद्गुणाढया, बहुसंसक्त-परिस्फुरद्विरेफा । बहुविध-बहुवर्ण-पुष्पमाला, वपुषि जिनस्य भवत्वमोघयोगा ।। डुसुमांसी सर्धने ( शाहुल० ) * २० श्लोऽथी धूप... नमुत्थुए यः साम्राज्यपदोन्मुखे भगवति स्वर्गाधिपै गुम्फितो. मंत्रित्वं बलनाथतामधिकृतिं स्वर्णस्य कोशस्य च । बिभ्रद्भिः कुसुमाञ्जलि र्विनिहितो भक्त्या प्रभोः पादयो दुःखौघस्य जलांजलिः स तनुता-दालोकनादेव हि ।। (Guभति) चेतः समाधातुमतीन्द्रियार्थे, पुण्यं विधातुं गणनाव्यतीतम् । निक्षिप्यतेऽर्हत्प्रतिमापदाग्रे, पुष्पाञ्जलिः प्रोद्गतभक्तिभावे ।। : * २० श्लोऽथी धूप.... नमुत्थुए..... औषधि मिश्रित ४ शो बर्धने (शाहुल०) जाते जन्मनि सार्वविष्टपपते- रिन्द्रादयो निर्जरा नीत्वा तं करसम्पुटेन बहुभिः सार्द्धं विशिष्टोत्सवे । शृंगे मेरूमहीधरस्य मिलिते, सानन्ददेवीगणे, स्नात्रारंभमुपानयन्ति बहुधा, कुंभांबुगंधादिकम् ।। (खार्या) योजनमुखान् रजतनिष्कमयान् मिश्रधातुमृद्रचितान् । दधते कलशान् संख्या तेषां युग-षट्ख दन्ति - मिता ।। (८०६४) - ૧૮

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