Book Title: Poojan Vidhi Samput 04 Arhad Mahapoojan Vidhi
Author(s): Maheshbhai F Sheth
Publisher: Siddhachakra Prakashan
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* गु३ पूभ्न : ईसुमांसी झरीने ४साहि (वृत्त)
सुरपति-हृदयावतीर्णमंत्र, प्रचुर - कला - विकल-प्रकाश भास्वन् । जिनपति-चरणाभिषेककाले, कुरू बृहतीवर विघ्न-प्रणाशम् ।। ॐ गुरो ! इह० शेषं पूर्ववत् ।। ८ ।।
+ हेतु पुन: सुभांली रीने
साहिङ (द्रुतविलखित)
निज निजवय-योग- जगत्त्रयी, कुशल-विस्तर- कारणतां गतः ।
भवतु केतुरनश्वर-सम्पर्वा, सतत हेतुरवारितविक्रमः । ॐ केलो ! इह० शेर्ष पूर्ववत् ।। ९ ।
+ क्षेत्रपाल पुन: सुभरीने ४लाहिङ (खार्या ) कृष्णासित कपिलवर्ण, प्रकीर्णकोपासितांघ्रियुग्म सवा ।
श्रीक्षेत्रपाल पालय, भविकजन विघ्नहरणेन ।। ॐ क्षेत्रपाल ! इह शेषं पूर्ववत् ।। १० ।। * વિધા દૈવી શાસનયક્ષ યક્ષિણી સુરલોકાદિ પૂજનો પ્રતિષ્ઠાવિધાન શાંતિકવિધાન પૌષ્ટિક વિધાનમાં ઉપયોગી હોવાથી આગળ વિસ્તારથી કહેવાશે.
* परमात्मनी गंध-पुष्प अक्षत धन धूप हीप वगेरे भजो पेन नं. ८
પરથી કરવી.
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(“इवं गन्धंo" गन्धपूजा, "नानावर्ण०” पुष्पपूजा, "प्रीणनं०" अक्षतपूजा, “श्रीखण्डा” धूपपूजा,
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