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श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. कायर कुपुरुष सेवियु, सजन जन १वयं सदाय ॥ सरि माणक कहे छंडिये, २चिर परिचित ए दुख दायरे । छंडो दूर मैथुन संज्ञाने ।। पूजो० ॥५॥
॥दोहो॥ वरजी मैथुन वेगलं, पालो ब्रह्म प्रधान ॥ ३साधु जन सेक्ति सदा, निर्वृति ५शर्म निदान ॥१॥
॥ ढाल । देव वंशना अंश तमे छो देव वंशना अंश ॥ ए देशी ॥ सर्व धर्ममां सार ब्रह्म छे सर्व धर्ममां सार ॥ रुचिर नियम तप रत्न त्रयीनो, एज एक आधार ॥ ब्रह्म छे सर्व धर्ममां सार । सर्व० ॥१॥ निःशंकी निर्भय निरुपाधि, परम, ९निवृत्ति १०अगार ।। दुर्गति मार्ग निरोधक दर्शक, सुगति मार्ग श्रीकार ।।
- ब्रह्म छे० ॥ सर्व० ॥२॥ अमल क्षमादि गुणोनो आश्रय, समस्त व्रत सरदार ॥ तेजस्वी लोकोत्तम तारक, वारक विपदा ११वार ॥
ब्रह्म छे० ॥ सर्व० ॥३॥ धर्म वृक्षनो स्कंध ब्रह्म छे, धर्म सरोवर पाल ॥ धर्म नगर १२प्राकार १३अतिदृढ, १४अररि १५परिध उदार ॥
ब्रह्म छे०॥ सर्व० ॥४॥ १ वर्जवायोग्य. २ अनादि कालथी सेवेलुं. ३ उत्तमअथवा मुनि. ४ मोक्ष. ५ सुख. ६ कारण. ७ सुंदर. ८ झान दर्शन चारित्र. ९ निरांत. १० घर. ११ समूह. १२ कील्लो. १३ वहु मझबूत. १४ कमाड. १५ भूगल
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