Book Title: Pooja Sangraha
Author(s): Manikyasinhsuri
Publisher: Hiralal Bhagubhai Shah

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Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९७ श्री वास्तुक पूजा अगिआरमे क्षीर सागर अनुपम, बारमे देव विमान ॥ तेरमे ररत्न निकर तेजस्वी, रनिर्धूम वह्नि प्रधान, निहाल्यो चौदशमे निरधार ॥ सुपन० ।। निसुणो० ॥४॥ ३व्योम थकी उतरतां वदने, 'अविशत पेख्यां एह ॥ मानु थशे किम फल वृत्ति मुज, गुण माणक गेह, विचारी भाखो तास विचार ॥ सुपन० ॥ निसुणो० ॥५॥ ॥दोहो॥ स्वप्न चतुर्दश सांभली, राणी मुखथी राय ।। प्रमुदित निज प्रज्ञा थकी, दाखे फल सुख दाय ॥१॥ ॥ढाल ॥ राग केरबो॥ ॥गोपीचंद लडका, यादेल वरशेरे कांचन महेलमें | ए देशी॥ १०देवानुप्रिया ते, स्वप्न सारामां सारां देखियां॥ए आंकणी।। ११रमणीय धन कण कांचन रिद्धि, सुख संपद १२संभार ॥ राज्य वृद्धि मनवांछित सिद्धि, होशे मंगलमालरे । देवानुप्रिया ॥१॥ अम कुल १२केतु अम कुल दीपक, अम कुल तिलक समान ॥ कुल १४तरु वर कुल मंडण १५मौलि, कुल १६भूधर कुल १७भाणरे ॥ देवानुप्रिया० ॥२॥ १ रत्ननो ढगलो. २ धूमाडा विनानो अग्नि. ३ आकाशथी. ४ मुखमां. ५ पेशतां. ६ घर. ७ आनंदित. ८ पोतानी बुद्धिथी. ९ भाखे १० सरलस्वभावा. ११ सुंदर. १२ समूह १३ ध्वज. १४ वृक्ष. १५ मुगट. १६ पर्वत. १७ सूर्य. For Private And Personal Use Only

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