Book Title: Pooja Sangraha
Author(s): Manikyasinhsuri
Publisher: Hiralal Bhagubhai Shah

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री दीपाली देववंदन उत्तराध्ययन छत्रीश, भाख्यां ते भवि सद्दयां जीरेजी ॥३॥जीरे० करता जग उपगार, सोल पहोर देशना दई जीरेजी ॥जीरे०॥ योग निरोधे नाथ, चौदसु गुणठाणुं लई जीरेजी ॥४:। जीरे० सरिथसिद्ध मुहूर्त, कार्तिक मास अमावसी जीरेजी ॥ जीरे० पाछली भली रात, स्वाति नक्षत्र तणो शशी जीरेजी ॥५॥जीरे० तिण अवसर प्रभु बीर, निवृति नगर सधारिया जीरेजी ॥जीरे० चलितासन ततकाल, २सुरपति सघला आविया जीरेजी॥६॥जीरे० प्रणमी जिन तिनु तेह, करणी उचित सघली करे जीरेजी ॥जीरे० भाव उद्योतने ठाम. द्रव्य उद्योत ते आचरे जीरेजी ॥७॥जीरे० उत्तम लोके कीध, झगमग दीपक आवली जीरेजी ॥ जीरे० त्यांथी प्रगटी एह, दीवाली जगमां भली जीरेजी ।।८॥ जीरे. छठतप करी नरनार. कल्याणकविधि आदरे जीरेजी ॥ जीरे० लाख कोडी फल तेह, जिनमाणक ध्याने वरेजीरेजी॥९॥जीरे० ॥ इतिश्री वीर स्तवनं ॥ ॥ अथ श्रीगौतमचैत्यवंदनं ॥ इंद्रभूति गणधर नमो, गौतम गोत्र महंत ।। मुख्य शिष्य महावीरनो, चरण करण गुणवंत ॥ १ ॥ जे निज श्रवणे सांभली, वीरतणुं निर्वाण ॥ वीतरागता भावतां वरिया केवल नाण ॥२॥ ते गौतम गुरु समरतां, दीवाली दिन खास ॥ माणक विजय कहे सवी, पोंचे मननी आस ॥३॥ ॥ इति प्रथम चैत्यवंदनं ॥१॥ १ मोक्ष. २ इंद्र. ३ शरीर. ४ श्रेणी. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145