Book Title: Pooja Sangraha
Author(s): Manikyasinhsuri
Publisher: Hiralal Bhagubhai Shah
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श्री दीपाली देववंदन
॥ शिव० ॥ गौतम० ॥५॥ दान दया दम त्रण पदने जे जाणे तेहज जीव ।। सुमनस २सौरभ न्याये वरते, ३भूधन, ४भिन्न सदैव ॥ वाणी०॥ अमृत०॥ शिव० ॥ गौतम० ॥ ॥६॥ इत्यादिक जिन मुखथी सुणतां, संशय टलियो दर ।। मान तजी दीक्षा लहि हुआ, गणधर प्रथम सनूर ॥ वाणी०॥ ॥ अमृत० ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥ ७ ॥ वीर जिनेश्वर मुक्ते पहोच्या उपन्यो चित्त ५विषाद ॥ क्षण अंतर समतारस ध्यावे, ध्यान शुक्ल आह्लाद ।। वाणी० ॥ अमृत० ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥८॥ दीवाली परभाते पाम्या केवल माणक सार ॥ अनुक्रमे शिव सुख वरिया गौतम, वंदू वारंवार ।। वाणी०॥अमृतक ॥ शिव० ॥ गौतम० ॥ ९ ॥
॥ इति श्रीगौतम स्तवनं ॥
॥ अथ दीपालिका गीतं ॥ ॥ वारीप्रभु दशमा शीतलनाथ सुणोएक विनतिरे लोलाएदेशी॥
भवियां पारंगत महावीर गया अपंचमी गइरे लोल ॥ भ० पावनपर्व दीवाली तव जगमां थइरे लोल ॥ १॥ भ० ॥ कुमति कदाग्रह कच्चर दूर निवारियेरे लोल ॥ भ० !! श्रद्धाभासन चेतन ९भवन समारियेरे लोल ॥ २॥ भ० || व्रत २०चंद्रोदय पंचवरण वर बांधियेरे लोल ॥ भ० ॥ संवर भाव सुगंधित धूपे धूपियेरे लोल ॥३॥ भ० ॥ उपशम अजव मद्दव पुष्प पगर
१ फुल. २ सुगंध. ३ शरीर. ४ जूदो. ५ खेद. ७ केवळ ज्ञानरूप रत्न. ७ मोक्ष. ८ कचरो. ९ घर. १० चंदरपा.
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