Book Title: Pooja Sangraha
Author(s): Manikyasinhsuri
Publisher: Hiralal Bhagubhai Shah
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श्री दीपाली देवचंदन
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पविमला वंद जग विख्यातजी ॥१॥ अष्टापदपर भरतनरेश्वर जिनवर भवन करावेजी, निजनिजलांछन २मान निरंजन चोवीश ३अर्हन. ठावेजी ।। जगदानंदन ते जिन वंदन गौतम गणधर आवेजी, निजलन्धे करी सूर्यकिरण धरी चढी जिनवंदे भावेजी ॥ २ ॥ त्रिपदी पामी गौतम स्वामी जिनमुखथी मनोहारीजी, निरुपम रचना पावन वचना गणिपिटका करी सारीजी ।। भविजन भाई पुण्ये पाई आगम अर्थ विचित्रजी, मन आणंदी पूजी वंदी कीजे जन्म पवित्रजी ।। ३ ।। शिवसुख मेवा मीठा लेवा जिनपदसेवा सारेजी, समकित धारी जे नरनारी विघ्न सकल तस वारेजी ॥ आपद कापे संपद आपे मातंगसुर सिद्धाईजी, शासनभक्ता धर्म रक्ता मुनिमाणक सुख दाईजी ॥४॥
॥ इति प्रथम श्री गौतम स्तुतिः ॥ १॥ ॥अथ द्वितीय श्री गौतम स्तुतिः ॥
॥ वसंततिलका वृत्तं ॥ श्रीज्ञात नंदन विनेयमुदार तारं, क्षीराश्रय प्रमुख लब्धि समृद्धथगारं ॥ नाम्नेद्रभूति महमाद्य गणेशितारं, वंदे सदा प्रवर गौतम गोत्र सारं ॥ १ ॥ सद्ज्ञान दर्शन चरित्र गुणद्धि युक्ताः संक्रंदनार्चित पदाः पमदास्त्र मुक्ताः । स्याद्वादिनो भुवि जयंतु सदा पवित्रा-स्तीथैकराः कलुष कर्दम शोष मित्राः ॥२॥ रंगत्प्रभूत नय भंग तरंग जालं, दृष्टांत कांततर मौक्तिक चक्रवालं ॥ नाना पदार्थ सलिलं गम हेतुरत्नं, सेवे जिनेंद्र
१ निर्मल. २ प्रमाण. ३ जिन. ४ द्वादशांगी.
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