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श्री वास्तुक पूजा
सुगुरु प्रतापविजय सुप्रतापे, प्रिय श्रुत माणक पाया। मेघविजय निज शिष्य वचनथी, ए अधिकार रचाया।सेवो॥६॥ वसुधा निधि निधि वसुधा वर्षे, (१९९१) मृगशिर मास मनाया ॥ वर पूर्णिमा दिन गुरुवारे, पूर्णानंद पमाया सेवो०॥७॥ राजनगरमां रही चोमासु, दोहला पास पसाया ॥ श्रद्धालु श्रावक हित हेते, पूजन एह बनाया ॥सेवो० ॥८॥ शांति धारक शांति कारक शांति नाम धराया, सूरि माणक श्रीशांतिजिनेश्वर, गुण माणकथी वधाया ।। सेवो सज्जन सेवो सज्जन, शांतिनाथ सुखदाया ॥९॥
॥ इति बाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंहसूरिकत
श्री वास्तुकपूजा संपूर्णा ॥
१ सुंदर, २ ज्ञान रूप रत्न. ३ सुदर (सिद्धियोग युक्त. ४ गुणरूपरत्नथी.
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