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श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा.
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|| मंत्र:|| ओ ही श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मल ब्रह्मचर्यदायकाय श्रीमते जिनेंद्राय दीपकं यजामहे स्वाहा ॥ अथ गीतं ॥ राग गझल | ताल कवाली ॥ ॥ आसक तो हो चुका हूं ॥ ए राह ॥ भक्ति तो कर रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥ त्रिभुवनके तात त्राता, दिव्यामृत शात दाता ॥ तुम नाम स्मर रहा हूँ, चाहे तारो या न तारो ॥ भक्ति०॥१॥ दीन बंधु दिव्य शक्ति, भव तरणी तुम भक्ति ॥
यह श्रद्धा धर रहा हूं, चाहे तारो या न तारो भक्ति० ||२|| प्रभु करुणा दृष्टि कीजे, शुभ २शील माणिक्य दीजे ॥ चरणे तो पर रहा हूँ, चाहे तारो या न तारो भक्ति० ॥३॥
॥ इति पंचम दीपक पूजा संपूर्णा ॥
॥ अथ पष्ठाक्षत पूजा प्रारंभ : ॥
३ अक्षत अर्जुन अक्षते, पूजो जगदाधार ॥ अक्षत ब्रह्म अधिपति, अक्षत ब्रह्म उदार ॥ १ ॥ सर्वकाल संरक्षवा, अक्षत शील अनूप ॥ पार्श्वस्थ शील परिहरो, भाखे त्रिभुवन भूप ॥ २ ॥
३७
१. सुख. २ शीलरूप रत्न. ३ अखंड. ४ उज्वल ५ अखंड. आत्म स्वरूप अथवा मोक्ष. ६ अखंड ब्रह्मचर्य आपनार. ७ शिथिलाचारी.
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